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New राखी सावंत अदालत Status, Photo, Video

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ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिदमत कर रही । देखकर ये आज हैरत हो गई ।। चाहते तो एक बेटा हम भी पर । पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।। जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए । लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।। मैं रहा बेताब जिस औलाद को । क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।। प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ । नाम से उसके ही दहशत हो गई ।। झूठ सच का ये हुआ है फैसला । दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।। कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी । अब पराई यार दौलत हो गई ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई ।
टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।।
दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई ।
जान को उनकी मुसीबत हो गई ।।
जिस तरह औलाद खिदमत कर रही ।
देखकर ये आज हैरत हो गई ।।
चाहते तो एक बेटा हम भी पर ।
पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।।
जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए ।
लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।।
मैं रहा बेताब जिस औलाद को ।
क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।।
प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ ।
नाम से उसके ही दहशत हो गई ।।
झूठ सच का ये हुआ है फैसला ।
दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।।
कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी ।
अब पराई यार दौलत हो गई ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिद

15 Love

#प्रेरक

अंध भक्तों को समझना उतना ही मुश्किल है जितना पुरानी फिल्मों में गवाह को सही सलामत अदालत पहुंचना होता था

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ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिदमत कर रही । देखकर ये आज हैरत हो गई ।। चाहते तो एक बेटा हम भी पर । पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।। जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए । लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।। मैं रहा बेताब जिस औलाद को । क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।। प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ । नाम से उसके ही दहशत हो गई ।। झूठ सच का ये हुआ है फैसला । दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।। कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी । अब पराई यार दौलत हो गई ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई ।
टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।।
दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई ।
जान को उनकी मुसीबत हो गई ।।
जिस तरह औलाद खिदमत कर रही ।
देखकर ये आज हैरत हो गई ।।
चाहते तो एक बेटा हम भी पर ।
पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।।
जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए ।
लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।।
मैं रहा बेताब जिस औलाद को ।
क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।।
प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ ।
नाम से उसके ही दहशत हो गई ।।
झूठ सच का ये हुआ है फैसला ।
दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।।
कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी ।
अब पराई यार दौलत हो गई ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिद

15 Love

#प्रेरक

अंध भक्तों को समझना उतना ही मुश्किल है जितना पुरानी फिल्मों में गवाह को सही सलामत अदालत पहुंचना होता था

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