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#शायरी  White एक तरफ दर्द का सैलाब और आंखों की चुभन,
समझ आता नहीं.. क्यूं उल्टी बह रही है पवन।

बंद मुट्ठी में सम्हाल रक्खे हैं, कुछ सपनों के पंख,
फिर दिल में है.. क्यूं आग सी जलने की तपन।।

🍁🍁🍁

©Neel

तपन 🍁

1,026 View

ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें कभी चाँद के ही बहाने से छत पर जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में  यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें  बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से  कोई कह दे उनसे गले से लगा लें  बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें  बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें  सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध  चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें  लगी आग जो तन बदन में हमारे  उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें  मिला जो अभी तक हमें चाहतों में  उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें  बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब  जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें  प्रखर तो यही रात दिन सोचता है । नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
चलो राह के आज काँटें चुरा लें 
उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें
कभी चाँद के ही बहाने से छत पर
जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें
न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे
अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें
बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में 
यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें 
बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से 
कोई कह दे उनसे गले से लगा लें 
बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें 
बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें 
सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध 
चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें 
लगी आग जो तन बदन में हमारे 
उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें 
मिला जो अभी तक हमें चाहतों में 
उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें 
बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब 
जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें 
प्रखर तो यही रात दिन सोचता है ।
नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें 
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें

16 Love

#शायरी #तपन  White आया सावन बादल छाया
रिमझिम बरसे पानी 
प्यासा मन तरसे तेरे मिलन को
जाने कब आऐ मेरे सजना बुझे तपन

©Shiva Sarika

#तपन

189 View

White ग़ज़ल :- धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं । दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।। खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी । फसल को आज मेरी जो हँसाने मेघ आये हैं ।। किसानों के हमीं साथी बने संसार में देखो । यही तो बात है जो अब जताने मेघ आये हैं ।। कहीं सूखा कहीं गीला प्रकृति के प्रेम पर निर्भर । बनाओ मत हमें बैरी बताने मेघ आये हैं ।। तपन से सूर्य की देखो धरा जब भी हुई प्यासी । सुना है प्यास को उसकी बुझाने मेघ आये हैं ।। भले इंसान थे कल तक मगर शैतान हैं अब तो । उन्हें इंसान अब फिर से बनाने मेघ आये हैं ।। वरुण जी भी हुए क्रोधित तुम्हारी आज हरकत से । सँभल जाओ प्रखर अब तुम सिखाने मेघ आये हैं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  White ग़ज़ल :-
धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं ।
दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।।

खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी ।
फसल को आज मेरी जो हँसाने मेघ आये हैं ।।

किसानों के हमीं साथी बने संसार में देखो ।
यही तो बात है जो अब जताने मेघ आये हैं ।।

कहीं सूखा कहीं गीला प्रकृति के प्रेम पर निर्भर ।
बनाओ मत हमें बैरी बताने मेघ आये हैं ।।

तपन से सूर्य की देखो धरा जब भी हुई प्यासी ।
सुना है प्यास को उसकी बुझाने मेघ आये हैं ।।

भले इंसान थे कल तक मगर शैतान हैं अब तो ।
उन्हें इंसान अब फिर से बनाने मेघ आये हैं ।।

वरुण जी भी हुए क्रोधित तुम्हारी आज हरकत से ।
सँभल जाओ प्रखर अब तुम सिखाने मेघ आये हैं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं । दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।। खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी । फसल को आज

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#शायरी  White एक तरफ दर्द का सैलाब और आंखों की चुभन,
समझ आता नहीं.. क्यूं उल्टी बह रही है पवन।

बंद मुट्ठी में सम्हाल रक्खे हैं, कुछ सपनों के पंख,
फिर दिल में है.. क्यूं आग सी जलने की तपन।।

🍁🍁🍁

©Neel

तपन 🍁

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ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें कभी चाँद के ही बहाने से छत पर जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में  यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें  बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से  कोई कह दे उनसे गले से लगा लें  बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें  बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें  सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध  चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें  लगी आग जो तन बदन में हमारे  उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें  मिला जो अभी तक हमें चाहतों में  उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें  बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब  जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें  प्रखर तो यही रात दिन सोचता है । नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
चलो राह के आज काँटें चुरा लें 
उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें
कभी चाँद के ही बहाने से छत पर
जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें
न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे
अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें
बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में 
यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें 
बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से 
कोई कह दे उनसे गले से लगा लें 
बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें 
बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें 
सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध 
चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें 
लगी आग जो तन बदन में हमारे 
उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें 
मिला जो अभी तक हमें चाहतों में 
उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें 
बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब 
जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें 
प्रखर तो यही रात दिन सोचता है ।
नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें 
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें

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#शायरी #तपन  White आया सावन बादल छाया
रिमझिम बरसे पानी 
प्यासा मन तरसे तेरे मिलन को
जाने कब आऐ मेरे सजना बुझे तपन

©Shiva Sarika

#तपन

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White ग़ज़ल :- धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं । दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।। खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी । फसल को आज मेरी जो हँसाने मेघ आये हैं ।। किसानों के हमीं साथी बने संसार में देखो । यही तो बात है जो अब जताने मेघ आये हैं ।। कहीं सूखा कहीं गीला प्रकृति के प्रेम पर निर्भर । बनाओ मत हमें बैरी बताने मेघ आये हैं ।। तपन से सूर्य की देखो धरा जब भी हुई प्यासी । सुना है प्यास को उसकी बुझाने मेघ आये हैं ।। भले इंसान थे कल तक मगर शैतान हैं अब तो । उन्हें इंसान अब फिर से बनाने मेघ आये हैं ।। वरुण जी भी हुए क्रोधित तुम्हारी आज हरकत से । सँभल जाओ प्रखर अब तुम सिखाने मेघ आये हैं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  White ग़ज़ल :-
धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं ।
दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।।

खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी ।
फसल को आज मेरी जो हँसाने मेघ आये हैं ।।

किसानों के हमीं साथी बने संसार में देखो ।
यही तो बात है जो अब जताने मेघ आये हैं ।।

कहीं सूखा कहीं गीला प्रकृति के प्रेम पर निर्भर ।
बनाओ मत हमें बैरी बताने मेघ आये हैं ।।

तपन से सूर्य की देखो धरा जब भी हुई प्यासी ।
सुना है प्यास को उसकी बुझाने मेघ आये हैं ।।

भले इंसान थे कल तक मगर शैतान हैं अब तो ।
उन्हें इंसान अब फिर से बनाने मेघ आये हैं ।।

वरुण जी भी हुए क्रोधित तुम्हारी आज हरकत से ।
सँभल जाओ प्रखर अब तुम सिखाने मेघ आये हैं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- धरा को फिर नई दुल्हन बनाने मेघ आये हैं । दफ़्न जो बीज थे अंदर  उगाने मेघ आये हैं ।। खुशी से झूमता हलधर मुरादें हो गई पूरी । फसल को आज

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