छाया है सुरूर जबसे, मुझ पर भी
आलम बदल गया है, मेरे
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 छाया है सुरूर जबसे, मुझ पर भी
आलम बदल गया है, मेरे दिल का
हर तरफ नजारे, लगने लगे है हसीन
उड़ने लगा हूँ मैं, बिन पंख के हवाओं में
क्या बताऊ,मेरा क्या हाल है
 हर सपने मेरे,,हकीकत में बदल गये, क्या मिले तुम
फिजाओ में फिर से, बहार लौट आई
मेरे चेहरे पर, गजब का नूर छा गया
मैं खिल कर,कलि से फूल हो गया
मेरे जज्बात को शब्द मिल गया
मैं लिख बैठा कविता तुम पर
तुम बन गये हो, मेरे अपने जबसे
तो अब डर मुझको
कैसा तन्हाईयों का।

©RAKESH Bihari

pahli mulakat ke liye...

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