सदियों की सूखी मिट्टी पर, बर्षा की बूंदों जैसी है।

"सदियों की सूखी मिट्टी पर, बर्षा की बूंदों जैसी है। माघ की भीषण ठंडी मै , भोर के सूरज जैसी माँ। याद आती है तेरी लोरी, दुनिया के कोलाहल मै, दिनभर के भूंखे बच्चे को पहली रोटी जैसी मॉं। इस जग की भागादौड़ी से दौड़ आऊं तेरे आँचल मै। ज्येष्ठ की तपती दोपहरी मै, पेड़ की शीतल छाया माँ। हरित दूर्वा के पत्तों पर, ओस की बूंदों जैसी है, लालच की मिली दुनिया मै, निर्मल गंगा जैसी माँ। :- राजीव कौरव ©Rajeev Kourav"

 सदियों की सूखी मिट्टी पर,
बर्षा की बूंदों जैसी है।
माघ की भीषण ठंडी मै ,
भोर के सूरज जैसी माँ।

याद आती है तेरी लोरी,
दुनिया के कोलाहल मै,
दिनभर के भूंखे बच्चे को
पहली रोटी जैसी मॉं।

इस जग की भागादौड़ी से
दौड़ आऊं तेरे आँचल मै।
ज्येष्ठ की तपती दोपहरी मै,
पेड़ की शीतल छाया माँ।

हरित दूर्वा के पत्तों पर,
ओस की बूंदों जैसी है,
लालच की मिली दुनिया मै,
निर्मल गंगा जैसी माँ।
         :-   राजीव कौरव

©Rajeev Kourav

सदियों की सूखी मिट्टी पर, बर्षा की बूंदों जैसी है। माघ की भीषण ठंडी मै , भोर के सूरज जैसी माँ। याद आती है तेरी लोरी, दुनिया के कोलाहल मै, दिनभर के भूंखे बच्चे को पहली रोटी जैसी मॉं। इस जग की भागादौड़ी से दौड़ आऊं तेरे आँचल मै। ज्येष्ठ की तपती दोपहरी मै, पेड़ की शीतल छाया माँ। हरित दूर्वा के पत्तों पर, ओस की बूंदों जैसी है, लालच की मिली दुनिया मै, निर्मल गंगा जैसी माँ। :- राजीव कौरव ©Rajeev Kourav

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