"उसमें तब्दीलियां सारी हम नज़रंदाज़ करते रहे
लहज़े में बदतमीजी और बेरूखी बर्दाश्त करते रहे
खता महज़ एक थी हम किस्मत का कसूर समझते रहे
ना हक ही खुद को ख़ाक उसको आसमां समझते रहे
इन सब के बीच एक सच्चाई मजबूती से दिखाई दी
खुद की जमीन भी है हम ही और बेशक आसमान भी
बबली भाटी बैसला
©Babli BhatiBaisla"