"जिन हाथों ने दी थी मुझे , आसमाँ सी उड़ान,
जब क़दमों के नीचे मेरे , रहता था आसमान,
कोई और नही , वो मेरे पिता का साया था,
जिन्होंने ख़ुदा की रज़ा से ,मुझे धरा पे लाया था,
ऊँगली पकड़ कर , सिखाया था मुझे चलना,
जिनके कंधे पर बैठकर मैने,चाहा था मचलना,
वो थे तो हर खुशी ,मेरे क़दमों में रहती थी,
गंगा जमुना सी पावन लहर ,आँखों से बहती थी,
राह की पथरीली राह भी ,वो आसान बना देते थे,
पतझड़ सी ज़िन्दगी में खुशी के ,फूल खिला देते थे,
दिखाया था आसमाँ तलक ,मुझे हाथों से उछाल के,
गिरने नही देते थे मुझे , उनके हौसले थे कमाल के,
मेरे पिता ही तो थे , मेरी ख़ुशियों की परिभाषा,
उनके जाने से टूट गई है जैसे ,जीवन की हर आशा ।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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