मुक्तक: अक्श आधार छंद– हरिगितिका छंद मापनी– 22 | हिंदी कव

" मुक्तक: अक्श आधार छंद– हरिगितिका छंद मापनी– 2212 2212 2212 2212 क्यों बादलों में अक्श अक्सर बन रहे अनजान से। कोई  लगे   है  देवता  तो   कुछ  लगे   शैतान  से। ये  भावनाओं का  भँवर बनता  बिगड़ता है कभी। जो खो गए अपने कहीं  फिर माँग  लूँ भगवान से॥ Dinesh Pandey © दिनेश कुशभुवनपुरी "

मुक्तक: अक्श आधार छंद– हरिगितिका छंद मापनी– 2212 2212 2212 2212 क्यों बादलों में अक्श अक्सर बन रहे अनजान से। कोई  लगे   है  देवता  तो   कुछ  लगे   शैतान  से। ये  भावनाओं का  भँवर बनता  बिगड़ता है कभी। जो खो गए अपने कहीं  फिर माँग  लूँ भगवान से॥ Dinesh Pandey © दिनेश कुशभुवनपुरी

#मुक्तक #अक्श #बादल @Raj Guru @Subhash Chandra gaTTubaba गुरु देव @Ritu Tyagi @Suhana parvin @kanta kumawat @Anupriya @Rank Nameless एक अजनबी @Anshu writer सुरमई साहित्य @Rakesh Kumar Das शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) @-"Richa_Shahu" @advocate SURAJ PAL SINGH Diksha Singh PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' R K Mishra " सूर्य " @Naveen Kumar @gungun gusain @RD bishnoi Nîkîtã Guptā @Alone Amit @Anjali Srivastav सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) @Dheeraj Srivastava @Priya Rajpurohit @.Indian Sing Language सुनील 'विचित्र' @Karan @Choudhary Nk kumar

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