#OpenPoetry एक अरसा गुज़रा, उसके गुज़रे हुए,
जो गुज़रा वो जमाना अजीब था।
लाख कोशिशें की उसको भूलने की,
हर बार उसका याद आना अजीब था।
बिन बोले कुछ उसका आना ज़िंदगी में,
बिन कहे यूँ चले जाना अजीब था।
मुड़ कर देखना उसका बार-बार,
देख कर मुस्कराना अजीब था।
© रुद्र प्रताप सिंह
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