अश्रु की जो श्रृंखला है बूंद तुम मेरा भी रखलो बेर | हिंदी कविता

"अश्रु की जो श्रृंखला है बूंद तुम मेरा भी रखलो बेर लाई शबरी जैसे अब मेरा जूठन भी चखलो।। प्रेम को मिटते है देखा कह रहें हैं अजनबी अनभिज्ञ सब हैं प्रेम से बस प्रेम की धूमिल छवि। सूर्य की किरणों सा मेरे भाल को चमकाते हो तुम इक झरोखे से पवन के केश को सहलाते हो तुम।। पिंजरे की तीली तोड़कर तुमने कहा उड़ जाने को, और त्याग झूठा सुख छबीली! कटुक निबौरी खाने को।। हाँ! प्रेम तुमसे प्रेम है मेरे प्रेम का तुम प्राण हो हाँ! हूँ धनुष मैं पार्थ का और तुम ही मेरे बाण हो।। मिथ्या से व्याकुल है जग ये एक तुम्हीं सच लग रहे हो तुम भी झूठे हो ये मिथ्या तुम खुदी से कह रहे हो।। तुम मेरी परछाईयों को दोष मेरा राग मानो और जो प्रतिबिंब मेरा उसको मेरा त्याग मानो।। क्या कहूं तुमसे मैं भार्गव! मेरे चक्षु प्राण रखलो अपने विकल संसार में तुम मेरा भी एक नाम रखलो।। ©स्वरस "रागिनी""

 अश्रु की जो श्रृंखला है
बूंद तुम मेरा भी रखलो
बेर लाई शबरी जैसे
अब मेरा जूठन भी चखलो।। 

प्रेम को मिटते है देखा
कह रहें हैं अजनबी
अनभिज्ञ सब हैं प्रेम से
बस प्रेम की धूमिल छवि। 

सूर्य की किरणों सा मेरे
भाल को चमकाते हो तुम 
इक झरोखे से पवन के
 केश को सहलाते हो तुम।। 

पिंजरे की तीली तोड़कर
तुमने कहा उड़ जाने को,
और त्याग झूठा सुख छबीली! 
कटुक निबौरी खाने को।। 

हाँ! प्रेम तुमसे प्रेम है
मेरे प्रेम का तुम प्राण हो
हाँ! हूँ धनुष मैं पार्थ का
और तुम ही मेरे बाण हो।। 

मिथ्या से व्याकुल है जग ये
एक तुम्हीं सच लग रहे हो
तुम भी झूठे हो ये मिथ्या
तुम खुदी से कह रहे हो।।

तुम मेरी परछाईयों को
 दोष मेरा राग मानो
और जो प्रतिबिंब मेरा
उसको मेरा त्याग मानो।। 

क्या कहूं तुमसे मैं भार्गव! 
मेरे चक्षु प्राण रखलो
अपने विकल संसार में तुम
मेरा भी एक नाम रखलो।।

©स्वरस "रागिनी"

अश्रु की जो श्रृंखला है बूंद तुम मेरा भी रखलो बेर लाई शबरी जैसे अब मेरा जूठन भी चखलो।। प्रेम को मिटते है देखा कह रहें हैं अजनबी अनभिज्ञ सब हैं प्रेम से बस प्रेम की धूमिल छवि। सूर्य की किरणों सा मेरे भाल को चमकाते हो तुम इक झरोखे से पवन के केश को सहलाते हो तुम।। पिंजरे की तीली तोड़कर तुमने कहा उड़ जाने को, और त्याग झूठा सुख छबीली! कटुक निबौरी खाने को।। हाँ! प्रेम तुमसे प्रेम है मेरे प्रेम का तुम प्राण हो हाँ! हूँ धनुष मैं पार्थ का और तुम ही मेरे बाण हो।। मिथ्या से व्याकुल है जग ये एक तुम्हीं सच लग रहे हो तुम भी झूठे हो ये मिथ्या तुम खुदी से कह रहे हो।। तुम मेरी परछाईयों को दोष मेरा राग मानो और जो प्रतिबिंब मेरा उसको मेरा त्याग मानो।। क्या कहूं तुमसे मैं भार्गव! मेरे चक्षु प्राण रखलो अपने विकल संसार में तुम मेरा भी एक नाम रखलो।। ©स्वरस "रागिनी"

#leaf @usFAUJI Jugal Kisओर @Yaminee Suryaja @PREETI AGGARWAL Satyaveer Singh

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