santosh sharma

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#wallpaper  White तेरी आदतों में जीने की आदत हो गई है मुझमें,
फिक्र न रहा खुद की, शहादत हो गई है तुझमें।

©santosh sharma

#wallpaper romantic

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White ।।सरहद के पार।। रातभर टपकती रही, हर दिशाओं में बहकती रही, न मिला ठिकाना,श्याम के जलधर में गरजती रही। सांस लेने की फुर्सत नही उसे,प्रवात चुप है कोने में, बहती गंगा स्वं वेग से,नदीओं में तेज उफनती रही। सरहदें लांघने लगी है वृष्टि, अब पुष्पदों की बारी है, विंहगम है मज्जन जहां का,सौंदर्य से गमकती रही। धरती से चलकर आशमान से मोतियां बरसने लगी है, बनाकर ठिकाना दविज, दिवाकर में चहँकती रही। प्यासी धरती सींच रही उदक को अपनी अधरों से, फूलों की बगीयां से धरा के आंगन में महकती रही। मौलिक रचना ।। संतोष शर्मा।। कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) दिनांक-06/07/2024 ©santosh sharma

#Nature  White ।।सरहद के पार।।

रातभर टपकती रही, हर दिशाओं में बहकती रही,
न मिला ठिकाना,श्याम के जलधर में गरजती रही।

सांस लेने की फुर्सत नही उसे,प्रवात चुप है कोने में,
बहती गंगा स्वं वेग से,नदीओं में तेज उफनती रही।

सरहदें लांघने लगी है वृष्टि, अब पुष्पदों की बारी है,
विंहगम है मज्जन जहां का,सौंदर्य से गमकती रही।

धरती से चलकर आशमान से मोतियां बरसने लगी है,
बनाकर  ठिकाना दविज, दिवाकर में चहँकती रही।

प्यासी धरती सींच रही उदक  को अपनी अधरों से,
फूलों की बगीयां से धरा के आंगन में महकती रही।

                               मौलिक रचना
                             ।। संतोष शर्मा।।
                        कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
                         दिनांक-06/07/2024

©santosh sharma

#Nature poem

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santosh's Live Show

santosh's Live Show

Thursday, 30 May | 12:03 am

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Expired
#लक्ष्य  मन ही मन कचोट रहा था,
धरती, गगन को देख रहा था।
धीरें धीरे अग्नि सेक रहा था,
भीड़ लगी थी गलियारों में,
लक्ष्य कही से भेद रहा था।
---संतोष शर्मा

©santosh sharma

#लक्ष्य की ओर

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रात, रात भर जागती रही, सूरज तरफ  झाँकती रही। नजरें न मिल सकी  उनसे, सर्द मौसम में काँपती रही। बरस रहा तुषार में पुरन्दर, उड़ रहा नीर का समन्दर। बिखर गयी ओंस की चादर, शीतल है बाहर और अंदर। भानू का रौशन कुमुंद है, उषा में मेघ बहुत धुंध है। रात, ठिठुरती रही रजनी, सबके पालनहार मुकुंद है। ©santosh sharma

#fog  रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma

#fog

15 Love

#my  bench रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma

#my heart

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