थक गई हूं, थक कर टूट गई हूं इस एक तरफा रिश्ते को निभाते निभाते।
अंदर से टूट गई हूं अपनी मोहब्बत की दो तरफा जिम्मेदारी अकेले निभाते हुए।
टूट कर मर चुंगी हूं अकेले रिश्ते निभाते हुए
कभी तो तू भी समझें हमारे रिश्ते की जिम्मेदारी की इसी आश में जिये जा रहे है।
यह दुनियां तेरे पर कोई इल्ज़ाम ना लगाएं मजबूर हूं मुस्कुराने को।
जूठी मुस्कान और जूठी आशा के साथ जीये जा रही जिंदगी के फसाने को।
आज फिर किसी ने वही पुराना दिल का जख्म कुरेदा हैं।
आज फिर उसकी यादों ने मुझे अंधेरो में घेरा है।
आज फिर किसी ने मेरी मोहब्बत से मुँह फेरा है।
जानती हूं कि मेरी किस्मत मे यहीअंधेरा मेरा हैं।
आज फिर किसी ने मेरे दिल के पुराने जख्मो को कुरेदा है।
इंसानियत आज फिर शर्मसार हुई।
आज फिर एक नारी हैवानों का शिकार हुई।
फिर चलेगा चार दिन इंसाफ़ का नारा।
उसके बाद भूल जाएगा हर बार के तरह यह देश सारा।
फिर जागेगा चार दिन के लिए यह देश सारा जब फिर कोई बलात्कारी बलात्कार करके घूमेगा सरेआम दुबारा।
फिर एक बार चार दिन के लिए चलेगा इंसाफ का नारा।
फिर दोबारा सो जाएगा यह देश सारा।
ज़िन्दगी के उस मुकाम पर जा पहुचे हैं जहाँ अपनों को खफ़ा कर बैठे हैं।
ज़िंदगी कि किताब का फिर वो पन्ना खोला है
आज एक बार फिर अपनी मोहब्बत के पुराने रिश्ते को खखोला है।
ज़िंदगी के हर पन्ने पर नाम है तेरा पाया ।अभी अपनी मोहब्बत का मुकम्मल होना है बकाया।
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