Rizvi Indori

Rizvi Indori Lives in Dharampuri, Madhya Pradesh, India

शक्ले अल्फ़ाज़ में जज़्बात बयां करता हूं।

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हो गई रात, चिरागों का दिन निकल आया! यानी हम जैसे दीवानों का दिन निकल आया! ©Shakl e Alfaaz Writes

#शायरी #Stars  हो गई रात,
चिरागों का दिन निकल आया!

यानी
हम जैसे दीवानों का दिन निकल आया!

©Shakl e Alfaaz Writes

#Stars

10 Love

बस इन्ही ढलती हुई शामों ने, हम चिरागों को अया बख्शी है। रिज़वी ©Shakl e Alfaaz Writes

#शायरी  बस इन्ही ढलती हुई शामों ने,

हम चिरागों को अया बख्शी है।



रिज़वी

©Shakl e Alfaaz Writes

बस इन्ही ढलती हुई शामों ने, हम चिरागों को अया बख्शी है। रिज़वी ©Shakl e Alfaaz Writes

10 Love

एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने। रिज़वी

#शायरी #Books  एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, 
हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने।

रिज़वी

एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने। © रिज़वी #Books

6 Love

एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने। रिज़वी

#शायरी #Books  एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, 
हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने।

रिज़वी

एक ही दिल था, किताबों से लगा बैठा हूं, हुस्न से इस ही लिए दिल ना लगाया मैंने। © रिज़वी #Books

8 Love

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आप ढलती हुई शामों की तरह, मेरी आँखों को सुकूँ देते हो।

#CityEvening  आप ढलती हुई शामों की तरह,

मेरी आँखों को सुकूँ देते हो।
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