बीते बहुत दिन, बिना दीदार के
ख़्वाबों में भी मिले, एक अरसा हुआ
तड़पता रहा मैं हर दिन, तेरे प्यार में
जैसे चकोर चाँद खातिर, हो तरसा हुआ
तूने दी थी कसम, तो लब मुस्कुराते रहे
उफनते तूफ़ान को, दिल में दबाते रहे
उड़ गई ख्वाहिशें, बन के फाहे, सनम
जैसे कोई बादल उड़ा, बिन बरसा हुआ
ख़ैरियत की ख़बर भी, कोई लाता नहीं
उस ओर तो कोई कबूतर, भी जाता नहीं
ले चल ऐ हवा तू ही, उधर उड़ा कर मुझे
सालने लगी है बेकली, मन में डर सा हुआ
फिर दिखी तुम अचानक, दरीचे पर कल
देह मुक्तक हो जैसे और हो आँखें गज़ल
मिल गई बूँद स्वाति की, चातक को फिर
अदना वो दरीचा भी, भव्य घर सा हुआ
बह चली है हृदय में, प्रेम की धार फिर
सुनने आया हो जैसे, कोई उद्गार फिर
बख़्श दी है ख़ुदा ने, एक नई ज़िंदगी
मन का मरुस्थल, भीगा शहर सा हुआ
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