Yugesh Kumar

Yugesh Kumar Lives in Jamshedpur, Jharkhand, India

विरले ही होते हैं हम जैसे है कुछ तो खास इस जान में है कोई न कोई खूबी जरूर आखिर बदनाम जो हैं हम इस जहाँ में। ©युगेश

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बड़ी कसमसाई नाज़ुक खयाल रखती है वो लड़की जो लम्बे बाल रखती है। ©युगेश

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वो लड़की जो लम्बे बाल रखती है।
©युगेश

रेत सा जो टिकता है कोई घाव ये गहरा है कोई गम समेटे जो हम खड़े हैं ये मुस्कान देख हँसता है कोई। भोर घर से जब निकलता बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई छूट जाए सपने तो क्या न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई। चेहरे से सिकन को फेंकता माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई कहता है बहुत खुश हूँ क्या खूब झूठ कहता है कोई। मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता खुद्दार है वो ये कहता है कोई मांड को जब दूध बताकर जब शौक से पीता है कोई। ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को गाँठ और ऐंठता है कोई तिल तिल कर वो जी रहा है जब तिल तिल कर मरता है कोई। भार शौक से उनके सपनों का सर पर अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई। ©युगेश

#inspirationalquotes #writersofinstagram #writeraofindia #writersofindia #wordsofwisdom #igwritersclub  रेत सा जो टिकता है कोई
घाव ये गहरा है कोई
गम समेटे जो हम खड़े हैं
ये मुस्कान देख हँसता है कोई।
भोर घर से जब निकलता 
बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई
छूट जाए सपने तो क्या
न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।
चेहरे से सिकन को फेंकता 
माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई
कहता है बहुत खुश हूँ
क्या खूब झूठ कहता है कोई।
मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता
खुद्दार है वो ये कहता है कोई
मांड को जब दूध बताकर
जब शौक से पीता है कोई।
ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को
गाँठ और ऐंठता है कोई
तिल तिल कर वो जी रहा है
जब तिल तिल कर मरता है कोई।
भार शौक से उनके सपनों का सर पर
अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई
सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको
सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई।
©युगेश

रेत सा जो टिकता है कोई घाव ये गहरा है कोई गम समेटे जो हम खड़े हैं ये मुस्कान देख हँसता है कोई। भोर घर से जब निकलता बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई छूट जाए सपने तो क्या न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।

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रेत सा जो टिकता है कोई घाव ये गहरा है कोई गम समेटे जो हम खड़े हैं ये मुस्कान देख हँसता है कोई। भोर घर से जब निकलता बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई छूट जाए सपने तो क्या न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई। चेहरे से सिकन को फेंकता माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई कहता है बहुत खुश हूँ क्या खूब झूठ कहता है कोई। मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता खुद्दार है वो ये कहता है कोई मांड को जब दूध बताकर जब शौक से पीता है कोई। ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को गाँठ और ऐंठता है कोई तिल तिल कर वो जी रहा है जब तिल तिल कर मरता है कोई। भार शौक से उनके सपनों का सर पर अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई। ©युगेश

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घाव ये गहरा है कोई
गम समेटे जो हम खड़े हैं
ये मुस्कान देख हँसता है कोई।
भोर घर से जब निकलता 
बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई
छूट जाए सपने तो क्या
न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।
चेहरे से सिकन को फेंकता 
माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई
कहता है बहुत खुश हूँ
क्या खूब झूठ कहता है कोई।
मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता
खुद्दार है वो ये कहता है कोई
मांड को जब दूध बताकर
जब शौक से पीता है कोई।
ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को
गाँठ और ऐंठता है कोई
तिल तिल कर वो जी रहा है
जब तिल तिल कर मरता है कोई।
भार शौक से उनके सपनों का सर पर
अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई
सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको
सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई।
©युगेश

रेत सा जो टिकता है कोई घाव ये गहरा है कोई गम समेटे जो हम खड़े हैं ये मुस्कान देख हँसता है कोई। भोर घर से जब निकलता बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई छूट जाए सपने तो क्या न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।

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तेरे आने की खबर कुछ यूँ आई जैसे गर्मी में राहत देती हो पुरवाई। ©युगेश

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जैसे गर्मी में राहत देती हो पुरवाई।
©युगेश
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#ektarfapyar #nojoto #poetrycommunity शनाख़्त नहीं हुई मोहब्बत की हमारी जज़्बात थे,सीने में सैलाब था पर गवाह एक भी नहीं लोगों ने जाना भी,बातें भी की पर समझ कोई न सका समझता भी कैसे अनजान तो हम भी थे

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मैं जला भी पर राख न हुआ बातें बेशुमार की पर बेबाक न हुआ जला मोम की तरह फिर सिकुड़ा रहा न बर्बाद ही हुआ न आबाद हुआ। ©युगेश

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बातें बेशुमार की पर बेबाक न हुआ
जला मोम की तरह फिर सिकुड़ा रहा
न बर्बाद ही हुआ न आबाद हुआ।
©युगेश
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