Sanjeet Aarya

Sanjeet Aarya Lives in Mumbai, Maharashtra, India

अनकहा शब्द जज्बातों का,

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#Women  ख्वाबों का आसमान नहीं 
ख़ुशी की जहान देती है
गिरा जब भी लड़खड़ाकर
 मेरी माँ... हाथें पकड़ लेती हैं,

#Women

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#PoetryOnline #StayAtHome  हमने कब जाना था
 कि यह  मंजर होगा,
अपना शहर भी 
एक दिन बंजर होगा,
गूंजों के इस शहर में 
 जाने कैसी ख़ामोशी छाई है,
अक्सर होश में रहने वाले
आज मदहोशी में आये है,
सुना है कुछ मिला है 
इन्हें इंसानो में,
अब तो जहर बेचने वाले भी
खुद मौत के हाथ आये हैं,
सुनसान सड़क 
 बिरान पड़ा अब शहर है,
इंसानों पर  प्रकृति का 
यह बड़ा कहर है,
दुबक  घरों में कैद है आज इंसान
सड़कों पर  बेख़ौफ़ घूम रहे हैं बेजुबान,
लगता है अब कुछ नही बचेगा
इंसान, इंसानो से  ही  डरेगा,
 जीद नही होगी अब 
 ज्यादा कमाने को,
सब डर से भागेंगे 
अपनी जान बचाने को,
कहते थे सबका हल है विज्ञान
फिर क्यों तड़प कर मर रहा इंसान,
छोडो अब बन्द करो 
प्रकृति का नुकसान,
वरना प्रकृति नही छोडेगी
 इंसानों का कोई भी निशान.... 👹 #StayatHome@fightagainstcorona

#PoetryOnline dilsere - archu 7 StuPid Aloneboy Anirudh Upadhyay Ritu

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तेरी आँखों में छाई मायूसी से, तेरे लबों की फीकी मुस्कान से तेरे हर जख्मों का हिसाब लूंगा आज नहीं तो कल बेहिसाब लूंगा तेरे दिखाये उन झूठे सपनो से आस्तीन के फरेबी अपनों से मिले हर फरेब का हिसाब लूंगा आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा तेरा यूँ पास आकर दूर जाने से खुद को इतना मगरूर बनाने से तेरे दिए हर दर्द का हिसाब लूंगा आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा भीड़ में खुद को तन्हा होने से रातों को फुट-फुटकर रोने से निकलें हर आंसू का हिसाब लूंगा आज नहीं तो कल बेहिसाब लूंगा

#poem  तेरी आँखों में छाई मायूसी से,
तेरे लबों की फीकी मुस्कान से
तेरे हर जख्मों का हिसाब लूंगा
आज नहीं तो कल  बेहिसाब लूंगा 

तेरे दिखाये उन  झूठे सपनो से
आस्तीन के फरेबी अपनों से
मिले हर फरेब का हिसाब लूंगा
आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा

तेरा यूँ पास आकर दूर जाने से
खुद को इतना मगरूर बनाने से
तेरे दिए हर दर्द का हिसाब लूंगा
आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा

भीड़ में  खुद को तन्हा होने से
रातों को  फुट-फुटकर रोने से
निकलें हर आंसू का हिसाब लूंगा 
आज नहीं तो कल बेहिसाब लूंगा

तेरी आँखों में छाई मायूसी से, तेरे लबों की फीकी मुस्कान से तेरे हर जख्मों का हिसाब लूंगा आज नहीं तो कल बेहिसाब लूंगा तेरे दिखाये उन झूठे सपनो से आस्तीन के फरेबी अपनों से मिले हर फरेब का हिसाब लूंगा आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा तेरा यूँ पास आकर दूर जाने से खुद को इतना मगरूर बनाने से तेरे दिए हर दर्द का हिसाब लूंगा आज नही तो कल बेहिसाब लूंगा भीड़ में खुद को तन्हा होने से रातों को फुट-फुटकर रोने से निकलें हर आंसू का हिसाब लूंगा आज नहीं तो कल बेहिसाब लूंगा

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यु तो कभी मैं अकेला नही हुआ करता था कभी होता था साथ मेरे पेड़ पौधों का साया, तुम क्या समझोगे मेरी दर्द-ए-दास्तान तुमने ही तो बदली है मेरी यह काया, दिख रहे हैं आज कहीं खुले मैदान तो कहीं बन रहें ऊँचे ऊँचे मकान, दूर दूर तक ढूंढो तुम मुझे अब पर न मिलेगा घने जंगलों का निशान, कभी काट कर तो कभी आग लगाकर तुम कर रहें प्रकृति का काम तमाम देखो इंसानो से मिला मुझे ये कैसा इनाम? छीनकर घर बेजुबानों का घर खुद का सवार रहे हो किस वहम में हो तुम जुबाँ वालों, खुद ही खुद का संसार उजाड़ रहे हो, सुनामी हो या हो बीन मौसम बारिश अब न मिलने वाली तुम्हें प्रकृति की आशीष....

#poem  यु तो कभी मैं अकेला नही हुआ करता था
कभी होता था साथ मेरे पेड़ पौधों का साया,
तुम क्या समझोगे मेरी  दर्द-ए-दास्तान
तुमने ही तो बदली है मेरी यह काया,
दिख रहे हैं आज कहीं खुले मैदान
 तो कहीं बन रहें ऊँचे ऊँचे मकान,
दूर दूर तक ढूंढो  तुम मुझे अब
पर न मिलेगा घने जंगलों का निशान,
कभी काट कर तो कभी आग लगाकर 
तुम कर रहें  प्रकृति  का काम तमाम
देखो इंसानो से मिला मुझे ये कैसा इनाम?
छीनकर घर बेजुबानों का
घर खुद का सवार रहे हो
किस वहम में  हो तुम जुबाँ वालों,
खुद ही खुद का संसार उजाड़ रहे हो,
सुनामी हो या हो बीन मौसम बारिश
अब न मिलने वाली तुम्हें प्रकृति की आशीष....

यु तो कभी मैं अकेला नही हुआ करता था कभी होता था साथ मेरे पेड़ पौधों का साया, तुम क्या समझोगे मेरी दर्द-ए-दास्तान तुमने ही तो बदली है मेरी यह काया, दिख रहे हैं आज कहीं खुले मैदान तो कहीं बन रहें ऊँचे ऊँचे मकान, दूर दूर तक ढूंढो तुम मुझे अब पर न मिलेगा घने जंगलों का निशान, कभी काट कर तो कभी आग लगाकर तुम कर रहें प्रकृति का काम तमाम देखो इंसानो से मिला मुझे ये कैसा इनाम? छीनकर घर बेजुबानों का घर खुद का सवार रहे हो किस वहम में हो तुम जुबाँ वालों, खुद ही खुद का संसार उजाड़ रहे हो, सुनामी हो या हो बीन मौसम बारिश अब न मिलने वाली तुम्हें प्रकृति की आशीष....

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यु तो कभी मैं अकेला नही हुआ करता था कभी होता था साथ मेरे पेड़ पौधों का साया, तुम क्या समझोगे मेरी दर्द-ए-दास्तान तुमने ही तो बदली है मेरी यह काया, दिख रहे हैं आज कहीं खुले मैदान तो कहीं बन रहें ऊँचे ऊँचे मकान, दूर दूर तक ढूंढो तुम मुझे अब पर न मिलेगा घने जंगलों का निशान, कभी काट कर तो कभी आग लगाकर तुम कर रहें प्रकृति का काम तमाम देखो इंसानो से मिला मुझे ये कैसा इनाम? छीनकर घर बेजुबानों का घर खुद का सवार रहे हो किस वहम में हो तुम जुबाँ वालों, खुद ही खुद का संसार उजाड़ रहे हो, सुनामी हो या हो बीन मौसम बारिश अब न मिलने वाली तुम्हें प्रकृति की आशीष....

#Nature #poem  यु तो कभी मैं अकेला नही हुआ करता था
कभी होता था साथ मेरे पेड़ पौधों का साया,
तुम क्या समझोगे मेरी  दर्द-ए-दास्तान
तुमने ही तो बदली है मेरी यह काया,
दिख रहे हैं आज कहीं खुले मैदान
 तो कहीं बन रहें ऊँचे ऊँचे मकान,
दूर दूर तक ढूंढो  तुम मुझे अब
पर न मिलेगा घने जंगलों का निशान,
कभी काट कर तो कभी आग लगाकर 
तुम कर रहें  प्रकृति  का काम तमाम
देखो इंसानो से मिला मुझे ये कैसा इनाम?
छीनकर घर बेजुबानों का
घर खुद का सवार रहे हो
किस वहम में  हो तुम जुबाँ वालों,
खुद ही खुद का संसार उजाड़ रहे हो,
सुनामी हो या हो बीन मौसम बारिश
अब न मिलने वाली तुम्हें प्रकृति की आशीष....

पथरीले रास्ते पर पथरीले रास्ते पर सफर कहाँ आसान है खत्म होते ही रास्ते, शुरू होता शमशान है गुजर जाती है एक जिंदगी मंजिल की तलाश में और पहुँचकर मुकाम पर रह जाती सिर्फ लाश है

 पथरीले रास्ते पर पथरीले रास्ते पर  सफर  कहाँ आसान है
खत्म होते ही रास्ते, शुरू होता शमशान  है
गुजर जाती है एक जिंदगी मंजिल की तलाश में
और पहुँचकर मुकाम पर रह जाती सिर्फ लाश है
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