Govind Bali

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kavita ek kahani hai ,mera kalam ko sunani hai , political,love,sahyari, zindagi

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व्ह तेरे चेहरे का तिल आज भी है क्या। मुझे देख जब मुस्कुराती थी वह तेरे चेहरे की रौनक बढ़ाता था। दुनिया की नजरों से तुझे बचाता था। आज भी जब तू मुस्कुराती है क्या वह तेरे चेहरे की रौनक बढ़ाता है। जब चेहरा अपना आईने में देखती है क्या मेरी याद से आज भी तेरा दिल शर्माता है। वह जो मुझे देखती थी मुस्कुराकर तु वह तिल तेरी खूबसूरती वह तिल । क्या आज भी मेरी याद में वह दिल तेरा शर्माता है। क्या तेरा दिल आज भी मुझे अपना बतलाता है। चल ठीक है और नग्नेमें नहीं लिखूंगा। देखूंगा तुझे मगर अब अपनी डायरी में तेरी यादों को कदे नहीं करूंगा तुझे खोने से पहले भी डरता था आज भी डरता हूं मगर इजहार ना करूंगा गोविंद बाली 18 सितंबर 2020

#alonesoul  व्ह तेरे चेहरे का  तिल आज भी है क्या।
मुझे देख जब मुस्कुराती थी वह तेरे चेहरे की रौनक बढ़ाता था। 
दुनिया की नजरों से तुझे बचाता था।
 आज भी जब तू मुस्कुराती है क्या वह तेरे चेहरे की रौनक बढ़ाता है।
जब चेहरा अपना आईने में देखती है 
क्या मेरी याद से आज भी तेरा दिल शर्माता है।
वह जो मुझे देखती थी मुस्कुराकर तु 
वह तिल  तेरी खूबसूरती  वह तिल । 
क्या आज भी मेरी याद में वह दिल तेरा शर्माता है।
क्या तेरा दिल आज भी मुझे अपना  बतलाता है।
 चल ठीक है और नग्नेमें नहीं  लिखूंगा।
देखूंगा तुझे मगर अब अपनी डायरी में तेरी यादों को कदे नहीं करूंगा 
तुझे खोने से पहले भी डरता था आज भी डरता हूं 
मगर इजहार ना  करूंगा
गोविंद बाली
18 सितंबर 2020

#alonesoul

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कभी मैं भी मोहब्बत लिखा करता था। उसकी जुल्फों को घनी छांव और उसकी आंखों को गहरा समंदर कहता था लभ उसके मखमल से लगते थे और मुस्कुराहट उसकी जन्नत सी लगती थी। फिर जिंदगी में दौर आया कि मोहब्बत इंकलाब होने लगी । उसकी जुल्फों की जगह संविधान की डिबेट लेने लगी। मजलूमओ के दुख लगने लगे टूटे दिल से ,और इंकलाब से मोहब्बत सी होने लगी। उसकी आंखें और उसकी जुल्फए खोने लगी। रैलियों में जाता था जब मजदूरों के लिए आवाज उठाता था जब एक अजीब सी मोहब्बत महसूस होने लगी। उनकी बाहों में नामोशी थी एक अजीब सी खामोशी थी । बांट रहे थे लोग मुझको कभी कॉम के नाम पर तू कभी,जात से पूछते थे नाम मेरा। मगर इंकलाब से यू मोहब्बत थी कि कोई धर्म पूछता था तो आजादी बतलाता था कोई कौम पूछता था तो हिंदुस्तानी बतलाता था। मैं अपने इंकलाब के साथ रोज मोहब्बत के पल बिताता था। ©Govind Bali 6 June 2020

#कविता #waiting  कभी मैं भी मोहब्बत लिखा करता था।
उसकी जुल्फों को घनी छांव और उसकी आंखों को गहरा समंदर कहता था लभ उसके मखमल से लगते थे और मुस्कुराहट उसकी जन्नत सी लगती थी।
फिर जिंदगी में दौर आया कि मोहब्बत इंकलाब होने लगी ।
उसकी जुल्फों की जगह संविधान की डिबेट लेने लगी। 
मजलूमओ के  दुख लगने लगे टूटे दिल से ,और इंकलाब से मोहब्बत सी होने लगी।
उसकी आंखें और उसकी जुल्फए खोने लगी।
रैलियों में जाता था जब मजदूरों के लिए आवाज उठाता था जब एक अजीब सी मोहब्बत महसूस होने लगी।
 उनकी बाहों में नामोशी थी एक अजीब सी खामोशी थी ।
बांट रहे थे लोग मुझको कभी कॉम के नाम पर तू कभी,जात से पूछते थे नाम मेरा।
मगर इंकलाब से यू मोहब्बत थी कि कोई धर्म पूछता था तो आजादी बतलाता था कोई कौम  पूछता था तो हिंदुस्तानी बतलाता था।
 मैं अपने इंकलाब के साथ रोज मोहब्बत के पल बिताता था।
©Govind Bali 6 June 2020

#waiting

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Fikar ka zikar na kar , zikar kar apni khubiyo ka, tu heera hai bas chamkana baki hai © Govind Bali 5 june 2020

#शायरी #govindbali #poem  Fikar ka zikar na kar , zikar kar apni khubiyo ka, tu heera hai bas chamkana baki hai
© Govind Bali
5 june 2020
#कविता #Kissbeats

#Kissbeats

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तू कहे तो सितारों को जमीन पर रख दो एक आईना लेकर जमीन पर रख दो © Govind Bali

#शायरी #govindbali #sahyari #Moon  तू कहे तो सितारों को जमीन पर रख दो एक आईना लेकर जमीन पर रख दो
© Govind Bali

तेरी बाहों में रहना है मगर मैं मौसम बरसात का प्रय तू हरियाली है और मैं मौसम पतझड़ का प्रिय तू रात पोर्णिमा की , मै अमावस का चांद प्रिय तू फोल गुलाब का मै जंगली बोगणविला प्रिय तू शन बगीचों की ,मै बेहड़ की आं प्रिय तू जल है गंगा की मै एक बेहती धर प्रिय तू है मधु मधुशाला की मैं एक खाली प्याला प्रिय तुझे बना लो मैं अपना मगर तू है परि सवर्गों की मैं एक तुच्छ मानव प्रिय तू उगता सूरज मै ढलती शाम प्रिय तू कविता प्रेम रस की मै राजनीतिक जुमला प्रिय तू रानी मेरे सपनों की मै तेरे लिया बस एक और लड़का प्रिय तेरी शेर की गलियां जन्नत , तेरी दहलीज स्वर्ग प्रिय तू मेरा सपनों की रानी प्रिय। ©गोविंद बाली 3rd May 2020

#कविता #govindbali #romance #Heart #poem  तेरी बाहों में रहना है मगर मैं मौसम बरसात का प्रय
तू हरियाली है और  मैं मौसम पतझड़ का प्रिय
तू रात पोर्णिमा की , मै अमावस का चांद प्रिय
तू फोल गुलाब का मै जंगली बोगणविला प्रिय 
तू शन बगीचों की ,मै बेहड़ की आं प्रिय 
तू जल है गंगा की मै एक बेहती धर प्रिय 
तू है मधु मधुशाला की मैं एक खाली प्याला प्रिय
तुझे बना लो मैं अपना मगर  तू है परि सवर्गों की मैं एक तुच्छ मानव प्रिय
तू उगता सूरज मै ढलती शाम प्रिय 
तू कविता प्रेम रस की मै राजनीतिक जुमला प्रिय 
तू रानी मेरे सपनों की मै तेरे लिया बस एक और लड़का प्रिय 
तेरी शेर की गलियां जन्नत , तेरी दहलीज स्वर्ग प्रिय 
तू मेरा सपनों की रानी प्रिय।
©गोविंद बाली 3rd May 2020
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