तुषार हिन्दू

तुषार हिन्दू Lives in Sri Ganganagar, Rajasthan, India

मेरी कलम लिखना नहीं आग उगलना जानती है मेरी आंखें पढना नहीं शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है मेरी जीभा बोलना नहीं सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है वीर रस का कवी हूँ साहब बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

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किसान छात्र संगठन सूरतगढ़ राजस्थान

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बाप-बेटा और संस्कृति एक रिश्ता

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Religion निज निज मैं नमन करूँ नमन करूँ मैं इस माटी को वीरो ने जहां शौर्य का इतिहास रचा नमन करूँ मैं उस हल्दीघाटी को शूर वीरों के पदचिन्हों पर चलना कर्म हमारा है जिस ध्वज को ले इतिहास रचा वो भगवा धर्म हमारा है

#कविता  Religion निज निज मैं नमन करूँ
नमन करूँ मैं इस माटी को 
वीरो ने जहां शौर्य का इतिहास रचा
नमन करूँ मैं उस हल्दीघाटी को
शूर वीरों के पदचिन्हों पर चलना कर्म हमारा है
जिस ध्वज को ले इतिहास रचा
वो भगवा धर्म हमारा है

जय जय राजस्थान जय जय सनातन

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मेरी कलम लिखना नहीं आग उगलना जानती है मेरी आंखें पढना नहीं शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है मेरी जीभा बोलना नहीं सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है वीर रस का कवी हूँ साहब बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

 मेरी कलम लिखना नहीं
आग उगलना जानती है
मेरी आंखें पढना नहीं
शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है
मेरी जीभा बोलना नहीं
सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है
वीर रस का कवी हूँ साहब
बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं
वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

जय जय सनातन

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मेरी कलम लिखना नहीं आग उगलना जानती है मेरी आंखें पढना नहीं शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है मेरी जीभा बोलना नहीं सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है वीर रस का कवी हूँ साहब बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

 मेरी कलम लिखना नहीं
आग उगलना जानती है
मेरी आंखें पढना नहीं
शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है
मेरी जीभा बोलना नहीं
सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है
वीर रस का कवी हूँ साहब
बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं
वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

जय जय सनातन

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मेरी कलम लिखना नहीं आग उगलना जानती है मेरी आंखें पढना नहीं शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है मेरी जीभा बोलना नहीं सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है वीर रस का कवी हूँ साहब बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

 मेरी कलम लिखना नहीं
आग उगलना जानती है
मेरी आंखें पढना नहीं
शूर वीरों की गाथाएं गढना जानती है
मेरी जीभा बोलना नहीं
सत्य असत्य को बराबर तौलना जनती है
वीर रस का कवी हूँ साहब
बस तभी मेरी कविता किसी गांधी को नहीं
वीर हिन्दू सपूत नाथूराम गोडसे को मानती है

जय जय सनातन

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