river_of_thoughts

river_of_thoughts Lives in Kishanganj, Bihar, India

मुझसे विद्रोह करती हैं मेरी ही परछाइयां... our facebook page https://www.facebook.com/gyaz786/

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river_of_thoughts's Live Show

river_of_thoughts's Live Show

Saturday, 20 January | 07:03 pm

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#आदिवासी_लड़कियां #निर्मला_पुतुल  वे जब खेतों में 
फ़सलों को रोपती-काटती हुई 
गाती हैं गीत 
भूल जाती हैं ज़िंदगी के दर्द 
ऐसा कहा गया है 
किसने कहे हैं उनके परिचय में 
इतने बड़े-बड़े झूठ? 
किसने? 
निश्चय ही वह हमारी जमात का 
खाया-पीया आदमी होगा... 
सच्चाई को धुँध में लपेटता 
एक निर्लज्ज सौदागर 

ज़रूर वह शब्दों से धोखा करता हुआ 
कोई कवि होगा
मस्तिष्क से अपाहिज!
#आदिवासी_लड़कियां
#निर्मला_पुतुल

©river_of_thoughts

वे जब खेतों में फ़सलों को रोपती-काटती हुई गाती हैं गीत भूल जाती हैं ज़िंदगी के दर्द ऐसा कहा गया है किसने कहे हैं उनके परिचय में इतने बड़े-बड़े झूठ? किसने? निश्चय ही वह हमारी जमात का खाया-पीया आदमी होगा... सच्चाई को धुँध में लपेटता एक निर्लज्ज सौदागर ज़रूर वह शब्दों से धोखा करता हुआ कोई कवि होगा मस्तिष्क से अपाहिज! #आदिवासी_लड़कियां #निर्मला_पुतुल ©river_of_thoughts

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#mohabbat  सच ही, मैं देखता हूं 
तुम्हारे बिना साथ बीते 
लम्हों का हिसाब भी तो
सिमट आता है इन्हीं चंद उंगलियों में
पर उन लम्हों में सिमटा एहसास
मेरे मन के रेतीले मैदान पर
अक्सरहां उठा करता है लहरों की तरह
और
इनके पीछे छूटी निशानों को
समेटने की कवायद में  
हथेलियां मेरी
करती हासिल...

फक़त ....रेत ही रेत!!

                     -  ' मानस प्रत्यय '

©river_of_thoughts

#mohabbat

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 जैसे एक बहुत लम्बी सज़ा काट कर
लौटता है कोई निरपराध क़ैदी
कोई आदमी
अस्पताल में
बहुत लम्बी बेहोशी के बाद
एक बार आँखें खोलकर लौट जाता है
अपने अन्धकार मॆं जिस तरह।

......
मैं लौट जाऊँगा
जैसे समस्त महाकाव्य, समूचा संगीत, सभी भाषाएँ और
सारी कविताएँ लौट जाती हैं एक दिन ब्रह्माण्ड में वापस


उदय प्रकाश

©river_of_thoughts

#Poetry

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#रमणिका_गुप्ता #कविता  मैं
प्रतिबन्धों की चौखट पर खड़ी
समय की दहलीज
लांघ कर
परम्परा के किवाड़ों से
निषेध की कीलें
उखाड़ रही थी।

#रमणिका_गुप्ता

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