R Kumar

R Kumar Lives in Dhanbad, Jharkhand, India

author of The flying Realistic words, Multilingual Poet !!

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मरुभूमि का पुष्प- शब्द की परिभाषा से परे, कुछ भाव उपजते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अनायास ही मरूभूमि पर बारिश की बूंदों से उपजीत पुष्प । निर्जन पड़े भूमि पर यूं ही खिल उठता है, सौंदर्य को परिभाषित करते हुए । पर यह उन बागियों के फूलों से कुछ अलग है , संसार इसे पुष्प नहीं मानती । पर इस में इन का दोष नहीं है ना ही पुष्प की और ना ही उस निर्मल वर्षा के बूंदों की , जिसने एक मरूभूमि पर जीवन का संचार किया। दोनों तो बस अभिप्राय है, स्वार्थ रहित साथ का। ठीक उसी तरह तुम वह शीतल जीवनदायी जल हो, और मैं मरुभूमि का पुष्प । बेशक कुछ अलग है पर गलत नहीं। भला जीवन देना कहां ही गलत होता है । मैं मुस्कुराता रहूंगा तुम्हारे स्पर्श में, और तुम अविरल बहते जाना। रितेश कुमार सिंह

#बात  मरुभूमि का पुष्प-

शब्द की परिभाषा से परे, 
कुछ भाव  उपजते हैं,
ठीक उसी तरह जैसे अनायास ही मरूभूमि पर बारिश 
 की बूंदों से उपजीत  पुष्प ।
निर्जन पड़े भूमि पर यूं ही  खिल उठता है,
सौंदर्य को परिभाषित करते हुए ।
पर यह उन बागियों के फूलों से कुछ  अलग है ,
संसार इसे पुष्प नहीं मानती ।
पर इस में इन का दोष नहीं है
ना ही पुष्प की और ना ही उस निर्मल वर्षा के बूंदों की ,
जिसने एक मरूभूमि पर जीवन का संचार किया।
दोनों तो बस  अभिप्राय है,
स्वार्थ रहित साथ का।
ठीक उसी तरह तुम  वह शीतल जीवनदायी जल हो, 
और मैं मरुभूमि का पुष्प ।
बेशक कुछ अलग है पर गलत नहीं। 
भला जीवन देना कहां ही गलत होता है ।
मैं मुस्कुराता रहूंगा तुम्हारे स्पर्श में, 
और तुम  अविरल बहते जाना।

 रितेश कुमार सिंह

मरुभूमि का पुष्प- शब्द की परिभाषा से परे, कुछ भाव उपजते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अनायास ही मरूभूमि पर बारिश की बूंदों से उपजीत पुष्प । निर्जन पड़े भूमि पर यूं ही खिल उठता है, सौंदर्य को परिभाषित करते हुए ।

13 Love

सच्चा झूठ" मुस्कुराते हुए फूलों सा, एक सच्चा झूठ है मेरा, बसंत की हवावो में फैले इत्र सा मैं भी जिवंत हो उठा हूं, तुझ में । मौन थे जो कल तक हम, आज संगत में हैं राग- रागिनी के। मुसाफिर से एक सच्चे झूठ में, बेवजह लबों पर मुस्कान दस्तक दे जाती हैं । रितेश

 सच्चा झूठ"
मुस्कुराते हुए फूलों सा,
एक सच्चा झूठ है मेरा,
बसंत की हवावो में फैले इत्र सा
मैं भी जिवंत हो उठा हूं,
तुझ में ।

मौन थे जो कल तक हम,
आज संगत में  हैं राग- रागिनी के।

मुसाफिर से एक सच्चे झूठ में,
बेवजह लबों पर मुस्कान दस्तक दे जाती हैं ।

रितेश

सच्चा झूठ मुस्कुराते हुए फूलों सा, एक सच्चा झूठ है मेरा, बसंत की हवावो में फैले इत्र सा मैं भी जिवंत हो उठा हूं, तुझ में । मौन थे जो कल तक हम,

15 Love

सच्चा झूठ" मुस्कुराते हुए फूलों सा, एक सच्चा झूठ है मेरा, बसंत की हवावो में फैले इत्र सा मैं भी जिवंत हो उठा हूं, तुझ में । मौन थे जो कल तक हम, आज संगत में हैं राग- रागिनी के। मुसाफिर से एक सच्चे झूठ में, बेवजह लबों पर मुस्कान दस्तक दे जाती हैं । रितेश

 सच्चा झूठ"
मुस्कुराते हुए फूलों सा,
एक सच्चा झूठ है मेरा,
बसंत की हवावो में फैले इत्र सा
मैं भी जिवंत हो उठा हूं,
तुझ में ।

मौन थे जो कल तक हम,
आज संगत में  हैं राग- रागिनी के।

मुसाफिर से एक सच्चे झूठ में,
बेवजह लबों पर मुस्कान दस्तक दे जाती हैं ।

रितेश

सच्चा झूठ मुस्कुराते हुए फूलों सा, एक सच्चा झूठ है मेरा, बसंत की हवावो में फैले इत्र सा मैं भी जिवंत हो उठा हूं, तुझ में । मौन थे जो कल तक हम,

10 Love

Souvenir When i heard the name, Through the whisper of the wind. I felt you and lost myself. The wind is not faithful anymore, It shook me again, Broke the promise, of not bringing the spring. Here i lay alone, With the thought, thay may not real ever. But this goes on, I failed to leave the silence alone. It broke, but not screamed. This wind is making me lier. I heard the name again, I saw the darkness in light, And felt the sensation in shun. Now the drying leafs are, Dreaming of rain, with the roots dead. Ritesh kumar singh

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When i heard the name,
Through the whisper of  the wind.
I felt you and lost myself. 
The wind is not faithful anymore,
It shook me again,
Broke the promise, of not bringing the spring.
Here i lay alone,
With the thought, thay may not real ever.
But this goes on,
I failed to leave the silence alone.
It broke, but not screamed.
This wind is making me lier.
I heard the name again, 
I saw the darkness in light,
And  felt the sensation in shun.
Now the drying leafs are,
Dreaming of rain, with the roots dead.

Ritesh kumar singh
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