आइने घर के हमारे टूटने लगे है
मेरे अपने भी मुझसे रूठने लगे है...
खायी थीं कसमें जिन्होंने साथ चलने की
साथ उनके अब छूटने लगे है...
मजबूर क्या हुए हम मोहब्ब्त के शहर में
मेरे अपने भी मुझे लूटने लगे है...
रोशन करते थे जो चिराग हमारे मकां को
वो चिराग भी अब बुझने लगे है...
ले चल अपने साथ दूर कही यार मेरे
घर में भी अब हमारे दम घुटने लगे है
✍️kamboj
असल मायनों मै तो वो जीना सिखाया करती है
जरूरत पड़ने पर वो गुंगो से भी बुलवाया करती है,
महबूब का घर हो या पुरखो की जमीनें उसने
मुड़ कर नहीं देखा जिनको वो भुलाया करती है,
उसको वक़्त की पाबंदियों से क्या मतलब
वो तो बेखौफ बाज़ार जाया करती है,
कल तक अंजान थी जो इश्क़ की abc से
सुना है आजकल इश्क़ की किताबें पढ़ा करती है,
उसके रुतबे की ना बात पूछो यारो वो
तो कर्फ्यू में भी दुकानें खोला करती है...
✍️kamboj
इनायत हम पर खुदा एक कर दे...
मेरे नाम के आगे उसका नाम भर दे...
फिर ऐलान मै भी ये सरेआम कर दू...
रूह तो छोड़ो मै जा भी उसके नाम कर दू...
अधूरी ज़िन्दगी अपनी ,हम पूरी करना चाहते है..
बस उसकी बाहों में मरना चाहते है...
✍️kamboj
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