Ravi Pandey

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कभी कभी शायरी और कभी कभी संगीत RTI ACTIVIST

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#प्रेरक #munshipremchand #Premchand  मुंशी प्रेमचंद बहुत ही हसमुँख स्वभाव के थे, उनकी हँसी मशहूर थी। एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान के उपरान्त एक छात्र ने उनसे पूछा- “आपके जीवन की सबसे बङी अभिलाषा क्या है?”

प्रेमचंद जी अपनी चिरपरिचित हँसी के साथ बोले- “मेरे जीवन की सबसे बङी अभिलाषा ये है कि ईश्वर मुझे सदा मनहूसों से बचाये रखे।”

प्रेमचंद जी 1916 से 1921 के बीच गोरखपुर के नोरमल हाई स्कूल में  में असिस्टेंट मास्टर  के पद पर रहे और इसी दौरान “सेवा सदन” सहित चार उपन्यासों की रचना की ।

#munshipremchand #premchand

©Ravi Pandey

मुंशी प्रेमचंद बहुत ही हसमुँख स्वभाव के थे, उनकी हँसी मशहूर थी। एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान के उपरान्त एक छात्र ने उनसे पूछा- “आपके जीवन की सबसे बङी अभिलाषा क्या है?” प्रेमचंद जी अपनी चिरपरिचित हँसी के साथ बोले- “मेरे जीवन की सबसे बङी अभिलाषा ये है कि ईश्वर मुझे सदा मनहूसों से बचाये रखे।” प्रेमचंद जी 1916 से 1921 के बीच गोरखपुर के नोरमल हाई स्कूल में में असिस्टेंट मास्टर के पद पर रहे और इसी दौरान “सेवा सदन” सहित चार उपन्यासों की रचना की । #munshipremchand #premchand ©Ravi Pandey

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#शायरी  परिंदों को नहीं भाता, ये गारे ईंट का जंगल
न जाने क्यूँ शहर मेरा, बना कंक्रीट का जंगल

दफ़न इनके तले मासूमियत, सपने, तमन्नाएं
तरक़्क़ी बो गई पत्थर के लाखों फीट का जंगल

©Ravi Pandey

परिंदों को नहीं भाता, ये गारे ईंट का जंगल न जाने क्यूँ शहर मेरा, बना कंक्रीट का जंगल दफ़न इनके तले मासूमियत, सपने, तमन्नाएं तरक़्क़ी बो गई पत्थर के लाखों फीट का जंगल ©Ravi Pandey

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#कविता  थक गया हूं रोटी के पीछे भाग भाग कर
 थक गया हूं रातों को जाग जाग कर
काश मिल जाए वही बीता हुआ बचपन
जब मां खिलाती थी भाग भाग कर
और सुलाती थी जाग जाग कर

©Ravi Pandey

थक गया हूं रोटी के पीछे भाग भाग कर थक गया हूं रातों को जाग जाग कर काश मिल जाए वही बीता हुआ बचपन जब मां खिलाती थी भाग भाग कर और सुलाती थी जाग जाग कर ©Ravi Pandey

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#जानकारी #कलाकारी
#समाज

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#पौराणिककथा

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