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कलम से क्रांति लाना मेरा प्रथम उद्देश्य 🤟🙏💖
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बीते समय से आधुनिक का दौर युग कौतूहल को सम्मान दे रही है होटलों पर देख पुरुषों की भीड़ भी शिक्षित महिला का प्रमाण दे रही है इंतजार है बेबाक सा द्वंद युद्ध का भी मौन होना जीत का फरमान दे रही है दफ्तरों से निकलते महिलाओं का झुण्ड शिक्षित समाज का ये प्रमाण दे रही है किसी श्वेत पत्र पर लिखना भी होगा लेखनी भी उड़ने का अरमान दे रही है देवी पूजन सर्वप्रथम हो समाज में अब शिक्षित समाज को ये अभिमान दे रही है विमानों को उड़ाते मेरे समाज की बेटी तभी महिला सपनों को उड़ान दे रही है होटलों पर देख पुरुषों की भीड़ भी शिक्षित महिला का प्रमाण दे रही है ।। ©कुमार दीपेन्द्र
कुमार दीपेन्द्र
17 Love
White हैसियत कम पर अरमान बहुत है जिसे देखो परेशान बहुत है सुना था नेकी करने से दुनिया जानती है आजकल लुटेरों की भी पहचान बहुत है ख्वाबों में देखे कुछ बड़े ख्वाब है पता चला ये ख्वाब भी बेईमान बहुत है सामने से गुजरते है कुछ लोग ही देखने से लगता है उनमें ईमान बहुत है हैसियत कम पर अरमान बहुत है जिसे देखो परेशान बहुत है ©कुमार दीपेन्द्र
12 Love
रातें किसी की याद में कटती है दिन भी दफ्तर ही खा जाता है कुछ देर ही गहरी नींद तो हो फिर शुरू ये दिन हो जाता है मन सोच विचार में लगा ही रहता कुछ ना कुछ हां भी हो जाता है एक ही पड़ाव बस पड़ता स्वप्न का फिर शुरू ये दिन हो जाता है गांव समाज सभी मित्र है बिछड़े जिन्हे सोच के ही मन भर जाता है बचपना बीत गई तो बड़े हो गए है ये मानव क्षण भर में ही मर जाता है कुछ ख्वाब सहेजे कुछ बिछड़ गए एक लक्ष्य को ऐसे कोई पा जाता है एक अरसे के बाद सोचा मुस्कुरा लूं ये मौत का भी डर खा जाता है रातें किसी की याद में कटती है दिन भी दफ्तर ही खा जाता है कुछ देर ही गहरी नींद तो हो फिर शुरू ये दिन हो जाता है ©कुमार दीपेन्द्र
रंगों की इस दुनिया में अपना रंग छोड़ते है जिसके बदलते है रंग उसका संग छोड़ते है ये आंखों को चुभन देती है गुलाल तो नहीं लो छूट गया है साथ कोई मलाल तो नहीं ना साथ मिला ना कोई उपहार मिल सका ना इजहार मिली ना इनकार मिल सका लिख दिया कविता जिस शख्स के लिए ना वो शख्स ना उसका प्यार मिल सका ना दिलों के इस महफ़िल में तकरार चहिए ना रंग ना किसी रंगों का त्योहार चहिए ना कोई हमदर्दी ना किसी का प्यार चहिए जो दोस्ती को निभाए रखे ऐसा यार चहिए टूटे हुए धागों को जोड़ एक पतंग उड़ाते है सारी शिकायतों को मिला कर रंग उड़ाते है ऐसे ही ख़्याल जो तुम्हें पसंद है आजकल बेरंग महफ़िल में गुलाल मनपसंद उड़ाते है तुम भी रंगों को अपने चेहरे पर लगाना अपने ही दाग अपनें ही रंगों से छुपाना होली है ईश्क की कोई मशाल तो नही लो छूट गया है साथ कोई मलाल तो नहीं। होली की शुभकामनाएं ❤️🎉 ©कुमार दीपेन्द्र
11 Love
ये कैसा बावलापन है मेरा ये कैसी मेरी रूहदारी है मैं खुद को आपका मान बैठा हूं बस बताना आपकी जिम्मेदारी है ये कश्मकश जिंदगी की उलझे हुए इससे निकलना भी समझदारी है मैं खुद को आईने में देख मुस्कुराता हूं बस बताना आपकी जिम्मेदारी है ©कुमार दीपेन्द्र
13 Love
मुझको सबसे प्यारा कह लो या आंखों का तारा कह लो इतना तो हक बनता ही है खुद को आप हमारा कह लो जब भी देखो मुझको देखो भले पागलपन का नजारा कह लो इतना तो हक बनता ही है खुद को आप हमारा कह लो ©कुमार दीपेन्द्र
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