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शायरी, ज़िन्दगी, मोहब्बत बस और क्या
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kavi ashish prakash
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चश्मा बापू का न पहनो पर एक नज़रिया रखना तुम दिल में सबके लिए ही करुणा का एक दरिया रखना तुम आशीष प्रकाश ©kavi ashish prakash
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Sunday, 30 May | 09:00 pm
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कैसे कैसे यार मंजर हो रहे हैं लोग अब खुद का जनाजा ढो रहे हैं कत्ल के इलाजाम से होके बरी वो खून की छींटे बदन से धो रहे हैं ओ किले के बादशाह हथियार भेजो जंग में योद्धा भी संयम खो रहे हैं हर कोई आंसू नहीं छलकाता खुल के पर सभी कोना पकड़ के रो रहे हैं शोर सुन के मातमों का बोला प्यादा दूर हो जा के शहंशाह सो रहे हैं हम अंधेरों को यहां जो लाए चुन के अब चिताओं से उजाले हो रहे हैं आशीष प्रकाश © ©kavi ashish prakash
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मांगो दुआएं आज हिंदुस्तान के लिए आदम न जाए कोई भी शमशान के लिए चुभता बहुत है अपनो का जाना यूं बेसबब इससे बड़ा न ज़ख्म है इंसान के लिए आंसू या चीख एक ही जैसे निकलते हैं एक जैसे हैं ये हिंदू मुसलमान के लिए सांसों को सांस अब मिले ये मर्ज हो फना करना दुआएं ये ही सबकी जान के लिए कुछ तो रहम हो अब यहां बंदे है तेरे सब मुश्किल है ये भी क्या खुदा भगवान के लिए? आशीष प्रकाश© ©kavi ashish prakash
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