मिश्री सा रस घोल न पाए।
बंद जुबां ये डोल न पाए।
जिनको सबसे प्यारा था मैं,
बोल प्यार के बोल न पाए।
हर पल मुझको तड़पाए हैं।
आंखों से नीर बहाए हैं।
कभी मिला न प्यार हमें पर,
गीत प्रेम के गाए हैं।
ऐसे प्यार से अच्छा है कि,
बिना प्यार के रह लेना।
जीवन के झंझावातों में,
जो मिले गमों को सह लेना।
मुझसे दूरी करनी है जो,
जो चुपके से तुम कर लेना।
विरह वेदना भाएगा ही,
अन्तर्मन को भर लेना।
नहीं कोई हम नेता हैं,
वादों की लड़ियां फेकूंगा।
ये प्रेम यज्ञ की आहुति है,
इसमें खुद को ही झोकूंगा।
निश्चिंत रहो न स्वार्थ सिद्ध में,
तुमको कभी पुकारूंगा।
जल जाऊंगा परवाना सा,
पर तुमको नहीं बुझाऊंगा।
✍️@अरुण द्विवेदी अनन्त
@श्री अयोध्या धाम
©कवि अरुण द्विवेदी अनन्त
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