Life Like जिंदगी और लोग
पहर-पहर ठहरते दिन को;
रात्रि ठहरी, अब विश्राम दो।
मेघों की गर्जना से,
क्या विप्लवता, तुम प्रमाण दो।।
तपिस यहां, अंगारों-सी;
सिसकती जिंदगी, कहते तुम विशाल आवाज दो।
रणभूमि नहीं, जीवन ये तेरा-
क्यों जन-जन को युद्ध का मैदान दो ?
पतित कहा, संघर्ष ये धरा;
अब तुम हुंकार भरो।
रागों को समेट तू अब ए-जिंदगी;
स्वयं, प्रज्ञान-सी एक प्रकाश दो।
छोड़ उम्मीदें, उम्मीदों के रखवालों से;
विस्मृत स्मृतियां, खुद को एक आवाज दो।
जो बह गए दरिया में साथ चलते-चलते;
छोड़ उन्हें, कर्मो में खुद को एक एहसास दो।।
आखिर,
जिंदगी है अपनी, उन्हे अपनी तो एक मुस्कान दो।।
©Saurav life
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