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ज़िन्दगी
क्या है ये जिंदगी?
ये ज़िन्दगी कोई लिखी हुई कहानी या कोई अनसुलझी सी पहेली है क्या?? हर रोज इक नया सपना और इक नये भँवर सा रहता है। अगर पीछे मुड़कर देखूं तो वहीं पागलपंती, वहीं पुरानी बातें और वहीं अधूरी दास्ताँ दिखाई देती है।।
कोई ले चले मुझे ज़िन्दगी के किसी आख़री छोर पर जहाँ मैं कह सकूं कि:
ऐ रात तू बता ज़रा आज साथ अपने मेरे लिए क्या लाई है..??
क्या आज फिर मेरे हिस्से बस फ़क़त तन्हाई है..??
कभी तो बात मान मेरी, कभी ज़रा रहम भी कर..!!
मेरे गम और ख़ुशी के बीच क्यों इतनी जुदाई है..??
हक़ है जीने का मुझको भी, क्यों मान नहीं लेती हो तुम..!!
आखिर क्यों भला मेरे हिस्से बस एक तड़प हीं आई है..??
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