VIMALESHYADAV

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न इश्क का तजुर्बा है, न उस राह का मुसाफिर हूं न उस गली से गुज़रे कभी, न उसके हम मुंतासिर हूं सच तो ये है, नजरों की चालबाजियां आती नही और लोग समझ बैठे है, उस जहां का काफ़िर हूं

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