Monik Gupta

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#myvoice #farmer

कभी न सोचा था भारत की गलियों में जिस्मों को बेचा जाएगा घर-घर घर बैठे होंगे दानव 3 साल की बच्ची तक को ना बख्शा जाएगा ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा शबरी के झूठे बेरों की श्रद्धा को बुलाया जाएगा गोरी चमड़ी और दिखावे में सीता को रुलाया जाएगा ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा नन्हे नन्हे बच्चों के हाथों में खाली कटोरा आयेगा शिक्षा को गुरुकुल से चोरी कर धंधे पर नचाया जाएगा । ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा

 कभी न सोचा था भारत की गलियों में 
जिस्मों को बेचा जाएगा 
घर-घर घर बैठे होंगे दानव
3 साल की बच्ची तक को ना बख्शा जाएगा 

....और तू बस बैठा कट्टर होकर 
जय श्रीराम के नारे गाएगा 

शबरी के झूठे बेरों की
श्रद्धा को बुलाया जाएगा 
गोरी चमड़ी और दिखावे में 
सीता को रुलाया जाएगा

....और तू बस बैठा कट्टर होकर 
जय श्रीराम के नारे गाएगा 

नन्हे नन्हे बच्चों के हाथों में 
खाली कटोरा आयेगा 
शिक्षा को गुरुकुल से चोरी कर 
धंधे पर नचाया जाएगा ।

....और तू बस बैठा कट्टर होकर 
जय श्रीराम के नारे गाएगा

कभी न सोचा था भारत की गलियों में जिस्मों को बेचा जाएगा घर-घर घर बैठे होंगे दानव 3 साल की बच्ची तक को ना बख्शा जाएगा ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा शबरी के झूठे बेरों की श्रद्धा को बुलाया जाएगा गोरी चमड़ी और दिखावे में सीता को रुलाया जाएगा ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा नन्हे नन्हे बच्चों के हाथों में खाली कटोरा आयेगा शिक्षा को गुरुकुल से चोरी कर धंधे पर नचाया जाएगा । ....और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा

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इक पत्थर की प्रतिमा के पीछे जंग छिड़ी जो दशकों से इक कोने में राम रो रहे अल्लाह की चादर भीगी अश्कों से जग में तेरे कभी ना आता अगर जानता मेरे मूल्यों का यह निष्कर्ष निकल कर आएगा नाम राम पर मेरे, एक इंसां को इंसां से लड़ाया जाएगा और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा मर्यादा आदर का पाठ जो मैंने सिखाना चाहा था जीती हुई लंका को मैंने सुसज्जित विभीषण को संभलाया था राजपाट वो आर्यवृत का एक पल में छोड़ कर आया था उन सब के बदले अब आज एक भव्य मंदिर आएगा जिसकी नीवों को मेरे बच्चों की लाशों पर बिछाया जाएगा

 इक पत्थर की प्रतिमा के पीछे 
जंग छिड़ी जो दशकों से 
इक कोने में राम रो रहे
अल्लाह की चादर भीगी अश्कों से 

जग में तेरे कभी ना आता
अगर जानता 
मेरे मूल्यों का यह निष्कर्ष 
निकल कर आएगा 

नाम राम पर मेरे, एक इंसां को इंसां 
से लड़ाया जाएगा 
और तू बस बैठा कट्टर होकर 
जय श्रीराम के नारे गाएगा 

मर्यादा आदर का पाठ 
जो मैंने सिखाना चाहा था 

जीती हुई लंका को मैंने 
सुसज्जित विभीषण को संभलाया था
राजपाट वो आर्यवृत का 
एक पल में छोड़ कर आया था 

उन सब के बदले अब 
आज एक भव्य मंदिर आएगा 
जिसकी नीवों को मेरे बच्चों की 
लाशों पर बिछाया जाएगा

इक पत्थर की प्रतिमा के पीछे जंग छिड़ी जो दशकों से इक कोने में राम रो रहे अल्लाह की चादर भीगी अश्कों से जग में तेरे कभी ना आता अगर जानता मेरे मूल्यों का यह निष्कर्ष निकल कर आएगा नाम राम पर मेरे, एक इंसां को इंसां से लड़ाया जाएगा और तू बस बैठा कट्टर होकर जय श्रीराम के नारे गाएगा मर्यादा आदर का पाठ जो मैंने सिखाना चाहा था जीती हुई लंका को मैंने सुसज्जित विभीषण को संभलाया था राजपाट वो आर्यवृत का एक पल में छोड़ कर आया था उन सब के बदले अब आज एक भव्य मंदिर आएगा जिसकी नीवों को मेरे बच्चों की लाशों पर बिछाया जाएगा

6 Love

साहब!! पैसे दे दो कहो तो कर दूँ कोई काज चार पहर बीत गए पर गले से गया न थोड़ा नाज। कल माँ लायी तो मजूरी से पैसे, पर बापू नशे बिन रह न सके ऐसे तो न देती माँ पर छुटकी का डर वो सह न सके। पोंछा यहाँ लगा दूँ या तुमको चाय बन दूँ मैं कहो तो पाँव दबा दूँ या फिर जूतों को चमका दूँ मैं। साहब! वो जो अंदर बैठा माँ कहती हैं, है दोस्त मेरा मिला नहीं मैं उससे पर माँ कहती है, वो सदा ही मेरे साथ चला। आप डरो मत!! जब मिलूंगा कह दूंगा, उसका एक दूध का लोटा मैंने पिया वो नाराज न होगा, माँ कहती है दिल का है वो बहुत बड़ा। पर साहब…. कुछ खाने  दे दो, घर बहना राह बाट रही सहमी चुप सी बैठी होगी बस भाई से उसको आस रही। अगर उदर अगन न मिट पाएगी तो आज रात भयावह आएगी भूखे शूलों की शय्या पर तो आज काम कहानी भी ना आएगी। साहब!! इस भीषण दहक में अब और बड़ा न जाएगा अभी देर हुई तो फिर शायद अगला सूर्योदय न आएगा।

 साहब!! पैसे दे दो कहो तो कर दूँ कोई काज
चार पहर बीत गए पर गले से गया न थोड़ा नाज।

कल माँ लायी तो मजूरी से पैसे, पर बापू नशे बिन रह न सके
ऐसे तो न देती माँ पर छुटकी का डर वो सह न सके।

पोंछा यहाँ लगा दूँ या तुमको चाय बन दूँ मैं
कहो तो पाँव दबा दूँ या फिर जूतों को चमका दूँ मैं।

साहब! वो जो अंदर बैठा माँ कहती हैं, है दोस्त मेरा
मिला नहीं मैं उससे पर माँ कहती है, वो सदा ही मेरे साथ चला।

आप डरो मत!! जब मिलूंगा कह दूंगा, उसका एक दूध का लोटा मैंने पिया
वो नाराज न होगा, माँ कहती है दिल का है वो बहुत बड़ा।

पर साहब…. कुछ खाने  दे दो, घर बहना राह बाट रही
सहमी चुप सी बैठी होगी बस भाई से उसको आस रही।

अगर उदर अगन न मिट पाएगी तो आज रात भयावह आएगी
भूखे शूलों की शय्या पर तो आज काम कहानी भी ना आएगी।

साहब!! इस भीषण दहक में अब और बड़ा न जाएगा
अभी देर हुई तो फिर शायद अगला सूर्योदय न आएगा।

साहब!! पैसे दे दो कहो तो कर दूँ कोई काज चार पहर बीत गए पर गले से गया न थोड़ा नाज। कल माँ लायी तो मजूरी से पैसे, पर बापू नशे बिन रह न सके ऐसे तो न देती माँ पर छुटकी का डर वो सह न सके। पोंछा यहाँ लगा दूँ या तुमको चाय बन दूँ मैं कहो तो पाँव दबा दूँ या फिर जूतों को चमका दूँ मैं। साहब! वो जो अंदर बैठा माँ कहती हैं, है दोस्त मेरा मिला नहीं मैं उससे पर माँ कहती है, वो सदा ही मेरे साथ चला। आप डरो मत!! जब मिलूंगा कह दूंगा, उसका एक दूध का लोटा मैंने पिया वो नाराज न होगा, माँ कहती है दिल का है वो बहुत बड़ा। पर साहब…. कुछ खाने  दे दो, घर बहना राह बाट रही सहमी चुप सी बैठी होगी बस भाई से उसको आस रही। अगर उदर अगन न मिट पाएगी तो आज रात भयावह आएगी भूखे शूलों की शय्या पर तो आज काम कहानी भी ना आएगी। साहब!! इस भीषण दहक में अब और बड़ा न जाएगा अभी देर हुई तो फिर शायद अगला सूर्योदय न आएगा।

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जब तय है कि दिन आखिरी होगा हर कय का अंजाम माटी ही होगा तो जब जिंदा ये माटी.. पसीने की बू क्यों है? माटी की महक से गुलशन ये जहां कब होगा? मेरे महल के कंगूरो का सर बहुत ऊंचा है उन सरों से शिकन के रुखसत का पल कब होगा? सिमेट लिया शानो शौकत को बाहों में कस कर कि जब ये सिमिटेगी मुझे,मेरी नम आंखों तक पहुंचने कोई नहीं होगा।

 जब तय है कि दिन आखिरी होगा 
हर कय का अंजाम माटी ही होगा 

तो जब जिंदा ये माटी.. पसीने की बू क्यों है? 
माटी की महक से गुलशन ये जहां कब होगा?

मेरे महल के कंगूरो का सर बहुत ऊंचा है 
उन सरों से शिकन के रुखसत का पल कब होगा?

सिमेट लिया शानो शौकत को बाहों में कस कर
कि जब ये सिमिटेगी मुझे,मेरी नम आंखों तक पहुंचने कोई नहीं होगा।

जब तय है कि दिन आखिरी होगा हर कय का अंजाम माटी ही होगा तो जब जिंदा ये माटी.. पसीने की बू क्यों है? माटी की महक से गुलशन ये जहां कब होगा? मेरे महल के कंगूरो का सर बहुत ऊंचा है उन सरों से शिकन के रुखसत का पल कब होगा? सिमेट लिया शानो शौकत को बाहों में कस कर कि जब ये सिमिटेगी मुझे,मेरी नम आंखों तक पहुंचने कोई नहीं होगा।

10 Love

शानो-शौकत तमगे-ओहदे का इतना दाम हुआ है क्या ? बंदी किसका कौन हुआ ? कुछ नाम हुआ है क्या ? हरा-केसरी लहू बह रहा कट्टर वार हुआ है क्या ? सौदागर जो मजहब के थे कोई गिरफ्तार हुआ है क्या ? उनके अच्छे-सच्चे वादों पर इल्ज़ामात हुआ है क्या ? संसद वाले रास्तों पर जेलों से निर्यात हुआ है क्या ? देख तो इस भगती दुनिया का अंजाम हुआ है क्या ? पल दो पल का इतना नाजुक कभी इंसां हुआ है क्या ? मर्ज हैं सबके अपने अपने कुछ इलाज़ हुआ है क्या ? गम के गुल्लक सबके अपने कुछ इज़हार हुआ है क्या ? चंद चमेली के फूलों का वो हार हुआ है क्या ? या संकोचों के पन्नों में दबकर बस इंतज़ार हुआ है क्या ? जीते सकल ये जीवन अपना जैसे इंसान अमर हुआ है क्या ? हर पल जीना अपनों की कीमत का ज्ञान हुआ है क्या ? अस्तित्व पे खुद के मन में तेरे सवाल हुआ है क्या ? तिनके से तू कितना भंगुर कुछ अहसास हुआ है क्या ?

 शानो-शौकत तमगे-ओहदे का इतना दाम 
हुआ है क्या ?
बंदी किसका कौन हुआ ? कुछ नाम 
हुआ है क्या ?

हरा-केसरी लहू बह रहा कट्टर वार
हुआ है क्या ?
सौदागर जो मजहब के थे कोई गिरफ्तार
हुआ है क्या ?

उनके अच्छे-सच्चे वादों पर इल्ज़ामात
हुआ है क्या ?
संसद वाले रास्तों पर जेलों से निर्यात
हुआ है क्या ?

देख तो इस भगती दुनिया का अंजाम
हुआ है क्या ?
पल दो पल का इतना नाजुक कभी इंसां
हुआ है क्या ?

मर्ज हैं सबके अपने अपने कुछ इलाज़
हुआ है क्या ?
गम के गुल्लक सबके अपने कुछ इज़हार
हुआ है क्या ?

चंद चमेली के फूलों का वो हार 
हुआ है क्या ?
या संकोचों के पन्नों में दबकर बस इंतज़ार 
हुआ है क्या ?

जीते सकल ये जीवन अपना जैसे इंसान अमर 
हुआ है क्या ?
हर पल जीना अपनों की कीमत का ज्ञान 
हुआ है क्या ?

अस्तित्व पे खुद के मन में तेरे सवाल
हुआ है क्या ?
तिनके से तू कितना भंगुर कुछ अहसास
हुआ है क्या ?

शानो-शौकत तमगे-ओहदे का इतना दाम हुआ है क्या ? बंदी किसका कौन हुआ ? कुछ नाम हुआ है क्या ? हरा-केसरी लहू बह रहा कट्टर वार हुआ है क्या ? सौदागर जो मजहब के थे कोई गिरफ्तार हुआ है क्या ? उनके अच्छे-सच्चे वादों पर इल्ज़ामात हुआ है क्या ? संसद वाले रास्तों पर जेलों से निर्यात हुआ है क्या ? देख तो इस भगती दुनिया का अंजाम हुआ है क्या ? पल दो पल का इतना नाजुक कभी इंसां हुआ है क्या ? मर्ज हैं सबके अपने अपने कुछ इलाज़ हुआ है क्या ? गम के गुल्लक सबके अपने कुछ इज़हार हुआ है क्या ? चंद चमेली के फूलों का वो हार हुआ है क्या ? या संकोचों के पन्नों में दबकर बस इंतज़ार हुआ है क्या ? जीते सकल ये जीवन अपना जैसे इंसान अमर हुआ है क्या ? हर पल जीना अपनों की कीमत का ज्ञान हुआ है क्या ? अस्तित्व पे खुद के मन में तेरे सवाल हुआ है क्या ? तिनके से तू कितना भंगुर कुछ अहसास हुआ है क्या ?

10 Love

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