कोरोना ने पैसे से दूर किया परिवार से करीब किया,
धर्म संस्कृति से जोड़ा, पाश्चात्य शैली ने नाता तोड़ा,
पर्यावरण को शुद्ध किया, आत्ममंथन का वक्त दिया,
क्या अपने क्या पराये कुछ पल एकांत का वास किया,
बहिर्मुख होते मन को अंतर्मुख होने का एहसास दिया,
कोरोना ने कोना कोना भटकने वाले यायावरों को,
मात पिता बड़े बुजुर्गों और परिवार से फिर जुड़ने का
अप्रितम मौका दिया सुनहरा।
ज्यादा आज़ादी में जीने लगा था मानव, प्रकृति की आपद
में अब कैद होकर जीवन के लिए कर रहा मंथन।
इंसानियत पर पड़ी विपदा से बचाने देवदूत मानव दिन
रात कर रहे अथक जतन।
अर्थव्यवस्था की अंधी दौड़ में बेलगाम दौड़ता मानव,
अब कुदरत की व्यवस्था में फिर से हो रहा मगन।
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