उदासियों को समेट कर तुम,अपनी रूह से लिखो।
लिखो कुछ ऐसा के लगे,अरे! ये तो मेरा ही किस्सा है।
और हो भी क्यों नहीं,ऊपरवाले ने लड़कियों की क़िस्मत
एक ही कलम से तो लिखी है।
फिर बची खुची कसर ,यहाँ मर्द (sarcasm) लोगनहीं छोड़ते।
लड़की हो तुम लड़की,इस बात का इस्बात हर रोज
कई कई मर्तबा कराया जाता है।
अगर रंग कृष्णा का है तो,हाय! बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी
इसके ब्याह में।
फिर उसके बड़े होने का ऐहसास, उसके रिश्तेदार हर रोज इख्ताला
करते हैं ।
चलो खुद को हिम्मती बना कर,कुछ कर दिखाने का सपना
आंखों में सजाती है।
दिल में मुहोब्बत और दिमाग में साहस लिए वो आगे भी बढ़ जाती है।
फिर होता है यूं के उसके पापा की छवि सा, उसके भाई के कद का,
उसकी जिंदगी को संवरता है।
और जब वो उसके हर सूरत में,समा जाता है, तब वो चला जाता है।
टूटा दिल, टूटा साहस लेकर भी,वो जिंदा है, लड़की है ना!मरने का
इल्जाम भी उसका चारित्र हनन करेगा, ये सोच कर वो
अपना परिवार संवारने के लिए,अपने सारे सपनो को छोड़कर
वो करने को तैयार हो जाती है, जो वो कभी सोच भी नही सकती थी।
इस कदर टूट जाने के बाद भी वो जिंदा रहती है शरीर से।
और फिर वो अपने रूह को समेटे कर दफन कर देती है और
याद करती है वो जो उसे हर रोजयाद दिलाया जाता है,
के , लड़की हो तुम लड़की!!! तुम्हे ऐसे ही जीना पड़ता है।
©Pragya Singh
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