कोई खास वजह नहीं।बस यूंही कुछ अनुभव बांटने की इच्छा हुई।
सामान्य सी बात है।एक महिला का जीवन उसके परिवार के इर्द-गिर्द ही रहता है।एक बेटी से पत्नी फिर बहू और फिर मां बनना और उन जिम्मेदारियों को निभाने के सफर में ही महिलाओं की पूरी जिंदगी की कहानी होती है।कुछ इन जिम्मेदारियों के साथ अपने सपनों को पूरा करने का सामर्थ्य रखती है तो कुछ के लिए धर की चारदीवारी ही उनका संसार होता है। अपनी सारी दिनचर्या, रस्मों रिवाज, पहचान, आदतों और ना जाने कितने ही चिजों में बदलाव के साथ सामंजस्य बैठाकर अपनी सारी जिम्मेदारियों को पूरा करने की कोशिश में लगी रहती हैं।
ऐसा नहीं है कि यह कोई स्पर्धा हो पुरूषों और उनकी मेहनत को महिलाओं से कम बताने की कोशिश की जा रही है।
बस आज जब उन सारी जिम्मेदारियों को निभाने की प्रक्रिया में मैं खुद भी शामिल हो चुकी हूं।तब मैंने इससे जुड़ी चुनौतियों और कठिनाइयों को और अच्छे से पहचाना है।और मुझे गर्व है कि आज मैं आत्मनिर्भर होने के इस क्रम में शामिल हूं।
©Priti Singh
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