Aakar Gupte

Aakar Gupte Lives in Pune, Maharashtra, India

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Fragile was her heart, For what he topple at, Saccharine with her voice, Carrying charishma in her eyes, Though that was outer appreance where as she was lugubrious from inside, Eclat on the love feelings sullied over love, One after another she enjoyed the presence and gifts. He was in her ex list later where as , She got her desire fullfiled, Scared to fall and trust someone again in love, He suppressed his feelings. For next present, next love was blooming, And it never ended unless the desires were dead. -Aakar Gupte

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For what he topple at,
Saccharine with her voice,
Carrying charishma in her eyes,
Though that was outer appreance where as she was lugubrious from inside,
Eclat on the love feelings sullied over love,
One after another she enjoyed the presence and gifts.
He was in her ex list later where as ,
She got her desire fullfiled,
Scared to fall and trust someone again in love,
He suppressed his feelings.
For next present, next love was blooming,
And it never ended unless the desires were dead.


-Aakar Gupte

कीया खास नहीं जिंदगी में, कुछ के लफ्जो पे मुस्कान दी, कुछ के लफ्जो की मुस्कान ली, किसी के दिल में बसा हूं, किसी के बद्दुआ में याद आता हूं, चल तो रही है सांस , जब तक ये बंद ना हो, अपने परिवार को खुश रखूंगा ।। हर चलते इंसान को खुश नहीं कर सकता, हर खुश इंसान को दुःखी नहीं कर सकता, बिस्तर भले मेरा हो साधारण सा, पर सुकून कि नींद आती है, दौलत से घर, बिस्तर , खरीद लोगे, पर नींद और परिवार नहीं खरीद पाओगे ।। -आकर गुप्ते

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कुछ के लफ्जो पे मुस्कान दी,
कुछ के लफ्जो की मुस्कान ली,

किसी के दिल में बसा हूं,
किसी के  बद्दुआ में याद आता हूं,

चल तो रही है सांस ,
जब तक ये बंद ना हो,
अपने परिवार को खुश रखूंगा ।।

हर चलते इंसान को खुश नहीं कर सकता,
हर खुश इंसान को   दुःखी  नहीं कर सकता,
बिस्तर भले मेरा हो साधारण सा,
पर सुकून कि नींद आती है,
 दौलत   से घर, बिस्तर , खरीद लोगे,
पर नींद और परिवार नहीं खरीद पाओगे ।।

-आकर गुप्ते

जाना तो मुझे घर है, पर आज घर से ही दूर हूँ, जिस खुशियों के लिए घर छोड़ा था, आज घर जाने की खुशी में, अपना आपा खो रहा हूँ । काग़ज़ भी है, राशन कार्ड भी है, इस पेट को पालने में, ये सब घर छोड़ आया हूँ, घर उधर ही है, अब तो ना पैर दर्द हो रहे, ना तो अब भूक है, बस घर जाने की खुशी में, अपना आपा खो रहा हूँ । -Aakar गुप्ते

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पर आज घर से ही दूर हूँ,
जिस खुशियों के लिए घर छोड़ा था,
आज घर जाने की खुशी में,
अपना आपा खो रहा हूँ ।
काग़ज़ भी है, 
राशन कार्ड भी है,
इस पेट को पालने में,
ये सब घर छोड़ आया हूँ,
घर उधर ही है,
अब तो ना पैर दर्द हो रहे,
ना तो अब भूक है,
बस घर जाने की खुशी में,
अपना आपा खो रहा हूँ ।

-Aakar गुप्ते
#कहानी #MyPoetry #story❤ #kahani

हर दीन आंखे खुले ऐसा जरूरी नही, पर हर रात आंखे बंद तो करनी ही है, सोचा कुछ अल्फ़ाज़ आपको बता दू, क्या पता आज रात का ये अल्फ़ाज़ आखरी हो जाय।।।

#बात #shayad #Time #Sach #Soch  हर दीन आंखे खुले ऐसा जरूरी नही,
पर हर रात आंखे बंद तो करनी ही है,
सोचा कुछ अल्फ़ाज़ आपको बता दू,
क्या पता आज रात का ये अल्फ़ाज़ आखरी हो जाय।।।

𝑨𝒇𝒕𝒆𝒓 𝒄𝒐𝒖𝒏𝒕𝒊𝒏𝒈 𝒅𝒂𝒚𝒔 𝒊𝒕 𝒔𝒆𝒆𝒎𝒔 𝒍𝒊𝒌𝒆 𝒕𝒉𝒆 𝑾𝒆𝒆𝒌𝒆𝒏𝒅 𝒉𝒂𝒔 𝒅𝒊𝒔𝒔𝒊𝒑𝒂𝒕𝒆𝒅, 𝑾𝒉𝒆𝒓𝒆 𝒂𝒔 𝒊𝒕𝒔 𝒄𝒂𝒗𝒆𝒂𝒕, 𝒊𝒇 𝒚𝒐𝒖 𝒔𝒕𝒆𝒑 𝒐𝒖𝒕𝒔𝒊𝒅𝒆 𝒚𝒐𝒖𝒓 𝒉𝒐𝒖𝒔𝒆. 𝒀𝒐𝒖 𝒂𝒓𝒆 𝒃𝒐𝒖𝒏𝒅 𝒕𝒐 𝒇𝒂𝒕𝒂𝒍. 𝑻𝒉𝒐𝒖𝒈𝒉 𝒊𝒕𝒔 𝒅𝒆𝒋𝒆𝒄𝒕𝒊𝒐𝒏 𝒕𝒐 𝒃𝒆 𝒄𝒐𝒏𝒇𝒊𝒏𝒆𝒅 𝒘𝒊𝒕𝒉𝒊𝒏 𝒇𝒐𝒖𝒓 𝒘𝒂𝒍𝒍𝒔. 𝑨𝒕 𝒕𝒉𝒊𝒔 𝒅𝒊𝒔𝒎𝒂𝒍 𝒕𝒊𝒎𝒆 , 𝒍𝒆𝒕𝒔 𝒏𝒐𝒕 𝒅𝒆 𝒎𝒐𝒕𝒊𝒗𝒂𝒕𝒆 𝒚𝒐𝒖𝒓𝒔𝒆𝒍𝒇. 𝑱𝒖𝒔𝒕 𝒃𝒆 𝒕𝒉𝒂𝒏𝒌𝒇𝒖𝒍 𝒕𝒐 𝒘𝒉𝒂𝒕 𝒚𝒐𝒖 𝒉𝒂𝒗𝒆 𝒂𝒏𝒅 𝒉𝒆𝒍𝒑 𝒐𝒖𝒕 𝒕𝒉𝒆 𝒏𝒆𝒆𝒅𝒚 𝒃𝒚 𝒅𝒐𝒊𝒏𝒈 𝒘𝒉𝒂𝒕𝒆𝒗𝒆𝒓 𝒚𝒐𝒖 𝒄𝒂𝒏 𝒅𝒐. 𝑨 𝒔𝒎𝒂𝒍𝒍 𝒔𝒕𝒆𝒑 𝒕𝒐 𝒎𝒐𝒕𝒊𝒗𝒂𝒕𝒆 𝒐𝒕𝒉𝒆𝒓, 𝑻𝒐 𝒉𝒆𝒍𝒑 𝒐𝒕𝒉𝒆𝒓 𝒕𝒐 𝒇𝒊𝒈𝒉𝒕 𝒕𝒉𝒊𝒔

#विचार #thought #writer #vichar #Moon  𝑨𝒇𝒕𝒆𝒓 𝒄𝒐𝒖𝒏𝒕𝒊𝒏𝒈 𝒅𝒂𝒚𝒔 𝒊𝒕 𝒔𝒆𝒆𝒎𝒔 𝒍𝒊𝒌𝒆 𝒕𝒉𝒆 
𝑾𝒆𝒆𝒌𝒆𝒏𝒅 𝒉𝒂𝒔 𝒅𝒊𝒔𝒔𝒊𝒑𝒂𝒕𝒆𝒅,
𝑾𝒉𝒆𝒓𝒆 𝒂𝒔 𝒊𝒕𝒔 𝒄𝒂𝒗𝒆𝒂𝒕, 𝒊𝒇 𝒚𝒐𝒖 𝒔𝒕𝒆𝒑 𝒐𝒖𝒕𝒔𝒊𝒅𝒆 𝒚𝒐𝒖𝒓 𝒉𝒐𝒖𝒔𝒆. 𝒀𝒐𝒖 𝒂𝒓𝒆 𝒃𝒐𝒖𝒏𝒅 𝒕𝒐 𝒇𝒂𝒕𝒂𝒍.
𝑻𝒉𝒐𝒖𝒈𝒉 𝒊𝒕𝒔 𝒅𝒆𝒋𝒆𝒄𝒕𝒊𝒐𝒏 𝒕𝒐 𝒃𝒆 𝒄𝒐𝒏𝒇𝒊𝒏𝒆𝒅 𝒘𝒊𝒕𝒉𝒊𝒏 𝒇𝒐𝒖𝒓 𝒘𝒂𝒍𝒍𝒔.

𝑨𝒕 𝒕𝒉𝒊𝒔 𝒅𝒊𝒔𝒎𝒂𝒍 𝒕𝒊𝒎𝒆 , 𝒍𝒆𝒕𝒔 𝒏𝒐𝒕 𝒅𝒆 𝒎𝒐𝒕𝒊𝒗𝒂𝒕𝒆 𝒚𝒐𝒖𝒓𝒔𝒆𝒍𝒇.

𝑱𝒖𝒔𝒕 𝒃𝒆 𝒕𝒉𝒂𝒏𝒌𝒇𝒖𝒍 𝒕𝒐 𝒘𝒉𝒂𝒕 𝒚𝒐𝒖 𝒉𝒂𝒗𝒆 𝒂𝒏𝒅 𝒉𝒆𝒍𝒑 𝒐𝒖𝒕 𝒕𝒉𝒆 𝒏𝒆𝒆𝒅𝒚 𝒃𝒚 𝒅𝒐𝒊𝒏𝒈 𝒘𝒉𝒂𝒕𝒆𝒗𝒆𝒓 𝒚𝒐𝒖 𝒄𝒂𝒏 𝒅𝒐.

𝑨 𝒔𝒎𝒂𝒍𝒍 𝒔𝒕𝒆𝒑 𝒕𝒐 𝒎𝒐𝒕𝒊𝒗𝒂𝒕𝒆 𝒐𝒕𝒉𝒆𝒓, 
𝑻𝒐 𝒉𝒆𝒍𝒑 𝒐𝒕𝒉𝒆𝒓 𝒕𝒐 𝒇𝒊𝒈𝒉𝒕 𝒕𝒉𝒊𝒔
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