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New कविता छायावाद Status, Photo, Video

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#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ©Harsh Sharma

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©Harsh Sharma

#कविता

16 Love

#कविता

कविता

432 View

#महादेवी_वर्मा #पौराणिककथा #जन्म_जयंती  

"मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता,
वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता।
मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा, 
चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा।"

©HintsOfHeart.

#महादेवी_वर्मा #जन्म_जयंती महादेवी वर्मा जी हिन्दी काव्य में छायावाद की एक प्रमुख स्तंभ थीं। जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदे

144 View

#कविता

14112 View

 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

198 View

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

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,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ©Harsh Sharma

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©Harsh Sharma

#कविता

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#कविता

कविता

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#महादेवी_वर्मा #पौराणिककथा #जन्म_जयंती  

"मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता,
वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता।
मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा, 
चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा।"

©HintsOfHeart.

#महादेवी_वर्मा #जन्म_जयंती महादेवी वर्मा जी हिन्दी काव्य में छायावाद की एक प्रमुख स्तंभ थीं। जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदे

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#कविता

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 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

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