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#dilbechara #Happiness  deepak_ki_dayri

#dilbechara #Happiness मेहमान

108 View

#कविता  White मीन होती हैँ एक मेहमान की तरह 
जो पल भर के लिए नजर आती हैँ फिर ख़ो जाती हैँ 

और मेजबाब  होता हैँ मेरी तरह 
जो सदा एक ही जगह पर  बंना रहता हैँ

©Arora PR

मेहमान और मेज़बान

99 View

Beautiful Moon Night बिन मोहब्बत ज़िन्दगी वीरान है, चार दिन की चाँदनी मेहमान है, अँधेरे का दायरा बढ़ता हुआ क़द, देखकर यह आसमाँ हैरान है, बेबसी छाई निगाहों में उदासी, और राहें लग रही सुनसान है, हर कोई संघर्षरत है रहगुज़र में, ज़िन्दगी होती कहाँ आसान है, गलतियाँ दिखाई पड़ती दूसरे की, ख़ुद से ही हर आदमी अनजान है, फूल ख़ुशियों का खिलेंगे बाग में, रह-ए-उल्फ़त में खड़ा ईमान है, प्रेम और आनंद है हर श्वास में, बोल 'गुंजन' कहाँ तेरा ध्यान है, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#चाँदनी #शायरी  Beautiful Moon Night बिन मोहब्बत ज़िन्दगी वीरान है, 
चार दिन की  चाँदनी मेहमान है,

अँधेरे का दायरा बढ़ता हुआ क़द,
देखकर   यह  आसमाँ   हैरान है,

बेबसी  छाई  निगाहों में  उदासी, 
और  राहें  लग  रही  सुनसान है,

हर कोई  संघर्षरत है रहगुज़र में, 
ज़िन्दगी  होती  कहाँ  आसान है,

गलतियाँ दिखाई पड़ती दूसरे की, 
ख़ुद से ही हर आदमी अनजान है,

फूल  ख़ुशियों का खिलेंगे बाग में, 
रह-ए-उल्फ़त  में  खड़ा  ईमान है,

प्रेम  और  आनंद है  हर  श्वास में, 
बोल  'गुंजन'  कहाँ  तेरा  ध्यान है,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
            चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

#चाँदनी मेहमान है#

12 Love

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

8,145 View

#dilbechara #Happiness  deepak_ki_dayri

#dilbechara #Happiness मेहमान

108 View

#कविता  White मीन होती हैँ एक मेहमान की तरह 
जो पल भर के लिए नजर आती हैँ फिर ख़ो जाती हैँ 

और मेजबाब  होता हैँ मेरी तरह 
जो सदा एक ही जगह पर  बंना रहता हैँ

©Arora PR

मेहमान और मेज़बान

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Beautiful Moon Night बिन मोहब्बत ज़िन्दगी वीरान है, चार दिन की चाँदनी मेहमान है, अँधेरे का दायरा बढ़ता हुआ क़द, देखकर यह आसमाँ हैरान है, बेबसी छाई निगाहों में उदासी, और राहें लग रही सुनसान है, हर कोई संघर्षरत है रहगुज़र में, ज़िन्दगी होती कहाँ आसान है, गलतियाँ दिखाई पड़ती दूसरे की, ख़ुद से ही हर आदमी अनजान है, फूल ख़ुशियों का खिलेंगे बाग में, रह-ए-उल्फ़त में खड़ा ईमान है, प्रेम और आनंद है हर श्वास में, बोल 'गुंजन' कहाँ तेरा ध्यान है, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#चाँदनी #शायरी  Beautiful Moon Night बिन मोहब्बत ज़िन्दगी वीरान है, 
चार दिन की  चाँदनी मेहमान है,

अँधेरे का दायरा बढ़ता हुआ क़द,
देखकर   यह  आसमाँ   हैरान है,

बेबसी  छाई  निगाहों में  उदासी, 
और  राहें  लग  रही  सुनसान है,

हर कोई  संघर्षरत है रहगुज़र में, 
ज़िन्दगी  होती  कहाँ  आसान है,

गलतियाँ दिखाई पड़ती दूसरे की, 
ख़ुद से ही हर आदमी अनजान है,

फूल  ख़ुशियों का खिलेंगे बाग में, 
रह-ए-उल्फ़त  में  खड़ा  ईमान है,

प्रेम  और  आनंद है  हर  श्वास में, 
बोल  'गुंजन'  कहाँ  तेरा  ध्यान है,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
            चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

#चाँदनी मेहमान है#

12 Love

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

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