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New तस्लीमा नसरीन की किताबें लज्जा Status, Photo, Video

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#मोटिवेशनल #किताबें #election_2024  White किताबें और मां बाप
 की बातें 
जिंदगी में कभी धोखा नहीं देती.!

©Krishna Deo Prasad. ( Advocate ).

#election_2024 #किताबें और मां बाप की बातें जिंदगी में कभी धोखा नहीं देती.!

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ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रखकर, जेहन में दुनिया के ताने रखकर। रातों की नींद गवाते है हम, सपनों की उम्मीद लिए।। ©Rimpi chaube

#सपनों_की_उम्मीद_लिए  ना समय की सीमा नापते है,
ना खाने का रहता होश हमे।
कभी भूखे भी सो जाते है,
सपनों की उम्मीद लिए।।
किताबें सिरहाने रखकर,
जेहन में दुनिया के ताने रखकर।
रातों की नींद गवाते है हम,
सपनों की उम्मीद लिए।।

©Rimpi chaube

#सपनों_की_उम्मीद_लिए 🧑‍💻📚 ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रख

18 Love

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

#किताबें #कविता

उसे तो मेरी किताबें खानी चाहिए 🤣 चूहा आटा गलती से खा रहा है

81 View

#शायरी

तस्लीमा आरीफ किच्छा में

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#मोटिवेशनल #किताबें #election_2024  White किताबें और मां बाप
 की बातें 
जिंदगी में कभी धोखा नहीं देती.!

©Krishna Deo Prasad. ( Advocate ).

#election_2024 #किताबें और मां बाप की बातें जिंदगी में कभी धोखा नहीं देती.!

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ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रखकर, जेहन में दुनिया के ताने रखकर। रातों की नींद गवाते है हम, सपनों की उम्मीद लिए।। ©Rimpi chaube

#सपनों_की_उम्मीद_लिए  ना समय की सीमा नापते है,
ना खाने का रहता होश हमे।
कभी भूखे भी सो जाते है,
सपनों की उम्मीद लिए।।
किताबें सिरहाने रखकर,
जेहन में दुनिया के ताने रखकर।
रातों की नींद गवाते है हम,
सपनों की उम्मीद लिए।।

©Rimpi chaube

#सपनों_की_उम्मीद_लिए 🧑‍💻📚 ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रख

18 Love

परिधानों से लाज ढाँपती नज़रों में छुप जाती थी, लज्जा बसती थी आँखों में मन ही मन सकुचाती थी, पर्दे के पीछे का सच भी डर की जद में सिमटा था, लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी, बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, खेतों की मेड़ों पर चलती इठलाती बलखाती थी, सावन में मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, देख आईने में ख़ुद को नटखट कितनी शर्माती थी, प्रेम और विश्वास अडिग वादे थे जीने मरने के, रूप सलोना फूलों सा कितनी सुंदर कद-काठी थी, माँ बाबूजी भैया भाभी सबके मन में रची-बसी, सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी, भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन', बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ •प्र • ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #लज्जा  परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra

#लज्जा बसती थी आँखों में#

16 Love

#किताबें #कविता

उसे तो मेरी किताबें खानी चाहिए 🤣 चूहा आटा गलती से खा रहा है

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#शायरी

तस्लीमा आरीफ किच्छा में

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