वफ़ा घूमती रही जंजीर हाथ में लेकर ,,पर मैने गुलामी,, बस शराब की कुबूल की ।।
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बहुत खुश है वो शक्श , बिकाऊ इश्क तेरा खैरात में लेकर ,, और मैंने नीलामी ,,,बस शराब की कुबूल की ।।
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बिना दर्द ,,बगैर किसी दुख के मिस्रों से बहुत मिली मुझे दात ए तब्बजो,,पर मैने सलामी ,,बस शराब की कुबूल की ।।
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हुसन रखता रहा उम्मीदें कभी गजल लिखूं उसपर 😂😂😂😂😂,पर कलम ने कलामी,,बस शराब की कुबूल की ।।
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मेरी कोशिशों में बह गए ,,मेरे नाम से मिलते जुलते ,,तेरे नाम के वो तीन हर्फ (राणा ),,हां मैंने नाकामी ,बस शराब की कुबूल की ।।
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बिन शराब मैं उसूलों से बेहकता हूं,, राहों से भटकता जाता हूं,,,बस सीधे चलने के लिए ,,मैने सेहगामी ,,बस शराब की कुबूल की ।।
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©#शुन्य राणा
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