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#कविता #वर्षा #पेड़ #cg_forest #जल  White मन के किवाड़ खोल 
दिल में उमंग भर
धरती के श्रृंगार के पावन सिंदूर का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

जलती धरा में गिरे धार बन के बह चली
पेड़ो के पत्तियों को उजल धवल करती है
जड़ों में गिरे पेड़ो के प्राण फलो में मिठास
मानव और जीव को ह्रदय प्रिय लगती है
काहे बंद छतरी में घूमते हो आप सब
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

बड़ी दूर से हैं आई अपनो को छोड़ आई
तेरे पाप धोने को धरा पर आई है
करो श्रृंगार अपनी घरणी और मात का 
लगाओ पेड़ और सजाओ इस धरा को
जीवन का आधार है जो धरा पेड़ बाग वन 
जल बिन नही कल मानो इस बात को
व्यर्थ न बहाओ जल सहेजो हर बूंदों का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

©Prince uday Shukla
#Videos

जल की सेवा

108 View

#प्रकृति #विचार #पानी #पेड़ #जल  *विचारणीय*

नदी से पानी नहीं, रेत चाहिए. 
पहाड़ से ओषधि नहीं, पत्थर चाहिए. 

वृक्ष से छाया नहीं, लकड़ी चाहिए. 
खेत से अन्न नहीं, नक़द फ़सल चाहिए. 

रेत से पक्की सड़क, मकान बनाकर, नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,
अब भटक रहे हैं।

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट दिए वृक्ष, तहस-नहस कर दी मेड़ें; 

अब भटक रही सभ्यता !!!

सूखे कुओं में झाँकते, 
खाली नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया ही हो जाती सुबह से शामें....!!!

बूँद-बूँद बिक रही जल की।
साँस लेने हवा भी बिकेगी,
कल्पना करें उस कल की!

©शैलेन्द्र यादव
#कविता #जल  मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मेरे प्रत्येक बुंद से तुम्हारा आस
मेरे कण कण में तुम्हारा श्वास
मै देव नहीं लेकिन कण कण में व्याप्त हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मेरे होने से
तुम्हारा कल था
आज है
कल होगा
मैं तुम्हारा अस्तित्व हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मैं शुद्ध
मुझे अशुद्ध तुमने किया
मैं अमर
मुझे मर(खत्म होने के कगार पर) तुमने किया
मैं कण कण में जन जन के लिए
मुझे कुछ जन के लिए बोतलों में व्याप्त तुमने किया
मैं प्रत्येक जीव का श्वास हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ
तुम्हारे कल के लिए
तुमसे कह रहा हूँ
मुझे बर्बाद करोगे
खुद को नष्ट करोगे
एक के जगह हजार बुंद प्रयोग करोगे
कल एक बुंद को तरसोगे
मेरी संरक्षण करोगे
खुद को जीवनदान दोगे
मैं तुम्हारे कल के लिए
तुमसे ये सब कह रहा हूँ
मैं तुम्हारा कल हूँ
मैं जल हूँ
मैं तुम्हारा कल हूँ

©कलम की दुनिया

#जल

315 View

#वीडियो

दबंग ने जलाया फसल अवशेष युवक का जल गया बाग

90 View

आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा आत्मा पवित्र और शुद्ध होती मैला तो तन और मन होता जल को क्या मालूम बिस्लेरी का काम बुझाना प्यास जल का आत्मा का वास तन का मन क्या जाने उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना ©Mahadev Son

#Bhakti  आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल 
प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती

समुद्र से बादल बन मेंह बनकर  फिर 
बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में 

चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा 
आत्मा पवित्र और शुद्ध होती

मैला तो तन और मन होता
जल को क्या मालूम बिस्लेरी का 
काम बुझाना प्यास जल का 

आत्मा का वास तन का मन क्या जाने
उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन

मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना

©Mahadev Son

आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में च

15 Love

#कविता #वर्षा #पेड़ #cg_forest #जल  White मन के किवाड़ खोल 
दिल में उमंग भर
धरती के श्रृंगार के पावन सिंदूर का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

जलती धरा में गिरे धार बन के बह चली
पेड़ो के पत्तियों को उजल धवल करती है
जड़ों में गिरे पेड़ो के प्राण फलो में मिठास
मानव और जीव को ह्रदय प्रिय लगती है
काहे बंद छतरी में घूमते हो आप सब
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

बड़ी दूर से हैं आई अपनो को छोड़ आई
तेरे पाप धोने को धरा पर आई है
करो श्रृंगार अपनी घरणी और मात का 
लगाओ पेड़ और सजाओ इस धरा को
जीवन का आधार है जो धरा पेड़ बाग वन 
जल बिन नही कल मानो इस बात को
व्यर्थ न बहाओ जल सहेजो हर बूंदों का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

©Prince uday Shukla
#Videos

जल की सेवा

108 View

#प्रकृति #विचार #पानी #पेड़ #जल  *विचारणीय*

नदी से पानी नहीं, रेत चाहिए. 
पहाड़ से ओषधि नहीं, पत्थर चाहिए. 

वृक्ष से छाया नहीं, लकड़ी चाहिए. 
खेत से अन्न नहीं, नक़द फ़सल चाहिए. 

रेत से पक्की सड़क, मकान बनाकर, नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,
अब भटक रहे हैं।

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट दिए वृक्ष, तहस-नहस कर दी मेड़ें; 

अब भटक रही सभ्यता !!!

सूखे कुओं में झाँकते, 
खाली नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया ही हो जाती सुबह से शामें....!!!

बूँद-बूँद बिक रही जल की।
साँस लेने हवा भी बिकेगी,
कल्पना करें उस कल की!

©शैलेन्द्र यादव
#कविता #जल  मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मेरे प्रत्येक बुंद से तुम्हारा आस
मेरे कण कण में तुम्हारा श्वास
मै देव नहीं लेकिन कण कण में व्याप्त हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मेरे होने से
तुम्हारा कल था
आज है
कल होगा
मैं तुम्हारा अस्तित्व हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मैं शुद्ध
मुझे अशुद्ध तुमने किया
मैं अमर
मुझे मर(खत्म होने के कगार पर) तुमने किया
मैं कण कण में जन जन के लिए
मुझे कुछ जन के लिए बोतलों में व्याप्त तुमने किया
मैं प्रत्येक जीव का श्वास हूँ
मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ

मैं जल हूँ
तुम्हारा कल हूँ
तुम्हारे कल के लिए
तुमसे कह रहा हूँ
मुझे बर्बाद करोगे
खुद को नष्ट करोगे
एक के जगह हजार बुंद प्रयोग करोगे
कल एक बुंद को तरसोगे
मेरी संरक्षण करोगे
खुद को जीवनदान दोगे
मैं तुम्हारे कल के लिए
तुमसे ये सब कह रहा हूँ
मैं तुम्हारा कल हूँ
मैं जल हूँ
मैं तुम्हारा कल हूँ

©कलम की दुनिया

#जल

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#वीडियो

दबंग ने जलाया फसल अवशेष युवक का जल गया बाग

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आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा आत्मा पवित्र और शुद्ध होती मैला तो तन और मन होता जल को क्या मालूम बिस्लेरी का काम बुझाना प्यास जल का आत्मा का वास तन का मन क्या जाने उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना ©Mahadev Son

#Bhakti  आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल 
प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती

समुद्र से बादल बन मेंह बनकर  फिर 
बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में 

चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा 
आत्मा पवित्र और शुद्ध होती

मैला तो तन और मन होता
जल को क्या मालूम बिस्लेरी का 
काम बुझाना प्यास जल का 

आत्मा का वास तन का मन क्या जाने
उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन

मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना

©Mahadev Son

आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में च

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