कान्हा प्रीत का रंग चढ़ा,संग चढ़ी है भंग।
आंखें कान्हा ढूंढती,डालूं उन पर रंग।
जन जन से मग पूछती, कहां छिपा चितचोर -
पूछे रंग गुलाल भी,होली किसके संग।।
वृंदावन कोई कहे ,जॅंह कदंब अरु मोर,
बरसाना की राधिका,गये कृष्ण उस ओर।
मधुबन में कोई कहे,दिखे कर रहे रास-
बरसाने -नॅंदगांव तक, ढूंढ रही हर ठौर।।
बरसाने की राधिका, कान्हा की जो प्रीत,
रंगे बिहारी संग उन, यही है ब्रज की निति।
यमुना तट बेनू अधर,गोपि ग्वाल के संग-
नहीं हृदय तो चरण में,जगह मिले यह रीति।।
अंतस प्रिय कान्हा बिना,होली किसके संग।
मतवाली सी घूमती , मुट्ठी में भर रंग।
संग किशन राधा दिखी,समझी तब मैं प्रीत-
अब अखियन जल सींचती,जुगल जोड़ि के अंग।।
वीणा खंडेलवाल
तुमसर महाराष्ट्र
©veena khandelwal
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