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New शून्य पर कविता Status, Photo, Video

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#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

bench आंखों से आंसू क्या निकले      शब्द शब्द आग उगलने लगे   कुछ शब्दो ने   वाह को चुना  कुछ ने कविता से आह  भरी  कई सत्य मौन मुखर हुए     कई कई संवेदना शून्य । ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS

#कविता #Quotes  bench आंखों से आंसू क्या निकले  
   शब्द शब्द आग उगलने लगे   
कुछ शब्दो ने   वाह को चुना 
 कुछ ने कविता से आह  भरी 
 कई सत्य मौन मुखर हुए 
    कई कई संवेदना शून्य ।

©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS

#कविता आंखों से आंसू क्या निकले      शब्द शब्द आग उगलने लगे   कुछ शब्दो ने   वाह को चुना  कुछ ने कविता से आह  भरी  कई सत्य मौन मुखर हुए

12 Love

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

8,145 View

#कविता

12,537 View

 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

198 View

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

bench आंखों से आंसू क्या निकले      शब्द शब्द आग उगलने लगे   कुछ शब्दो ने   वाह को चुना  कुछ ने कविता से आह  भरी  कई सत्य मौन मुखर हुए     कई कई संवेदना शून्य । ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS

#कविता #Quotes  bench आंखों से आंसू क्या निकले  
   शब्द शब्द आग उगलने लगे   
कुछ शब्दो ने   वाह को चुना 
 कुछ ने कविता से आह  भरी 
 कई सत्य मौन मुखर हुए 
    कई कई संवेदना शून्य ।

©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS

#कविता आंखों से आंसू क्या निकले      शब्द शब्द आग उगलने लगे   कुछ शब्दो ने   वाह को चुना  कुछ ने कविता से आह  भरी  कई सत्य मौन मुखर हुए

12 Love

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

8,145 View

#कविता

12,537 View

 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

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