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#Moon  White निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं 
युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं
सरकारों के वादे सुन सुन, दिल में उठती है बस टीस 
मन करता मिल जाए गर ये, रख दू इनको दे दस बीस 
नहीं किसी भी काम के हैं यह, सोच सोच कर माथा पीट रहा हूं 
निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं
पिता के झुकता कंधे मेरे, रोज एक प्रश्न करते हैं 
मां की बुद्धि होती आंखें नित, केवल एक स्वप्न गढ़ते हैं 
उन प्रश्नों के उन सपनों के, लपटों में जलकर मैं भून रहा हूं
निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं
रिश्तेदार सब ताने देते हैं, उम्र ब्याह की निकल रही है 
साहस अब देखो टूट रहा है, धैर्य की डोर हाथों से फिसल रही है
फिर भी भर्ती के फॉर्म भरकर,इधर-उधर परीक्षा देने में घूम रहा हूं
 निज सपनों की चिता जलकर, राख समेटे घूम रहा हूं 
युवा हूं मैं भारत का युव, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं
@mr_master__sab

©Ankur tiwari

#Moon निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं सरकारों के वादे सुन सुन, दिल मे

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जरूरी नहीं है कि मूरत पत्थर की हो या मिट्टी की माथा टेकने के लिए तो बस ••श्रद्धा जरूरी•• है ©Shalini Nigam

#श्रद्धा #जरूरी #विचार #माथा #yqbaba  जरूरी नहीं है कि
 मूरत पत्थर की हो या मिट्टी की
माथा  टेकने के लिए
 तो बस ••श्रद्धा जरूरी•• है

©Shalini Nigam

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा । देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।। माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता । होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।। १२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।
देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।।
माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता ।
होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।।
१२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।

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#Moon  White निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं 
युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं
सरकारों के वादे सुन सुन, दिल में उठती है बस टीस 
मन करता मिल जाए गर ये, रख दू इनको दे दस बीस 
नहीं किसी भी काम के हैं यह, सोच सोच कर माथा पीट रहा हूं 
निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं
पिता के झुकता कंधे मेरे, रोज एक प्रश्न करते हैं 
मां की बुद्धि होती आंखें नित, केवल एक स्वप्न गढ़ते हैं 
उन प्रश्नों के उन सपनों के, लपटों में जलकर मैं भून रहा हूं
निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं
रिश्तेदार सब ताने देते हैं, उम्र ब्याह की निकल रही है 
साहस अब देखो टूट रहा है, धैर्य की डोर हाथों से फिसल रही है
फिर भी भर्ती के फॉर्म भरकर,इधर-उधर परीक्षा देने में घूम रहा हूं
 निज सपनों की चिता जलकर, राख समेटे घूम रहा हूं 
युवा हूं मैं भारत का युव, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं
@mr_master__sab

©Ankur tiwari

#Moon निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं सरकारों के वादे सुन सुन, दिल मे

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जरूरी नहीं है कि मूरत पत्थर की हो या मिट्टी की माथा टेकने के लिए तो बस ••श्रद्धा जरूरी•• है ©Shalini Nigam

#श्रद्धा #जरूरी #विचार #माथा #yqbaba  जरूरी नहीं है कि
 मूरत पत्थर की हो या मिट्टी की
माथा  टेकने के लिए
 तो बस ••श्रद्धा जरूरी•• है

©Shalini Nigam

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा । देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।। माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता । होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।। १२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।
देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।।
माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता ।
होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।।
१२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।

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