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#hindi_poem_appreciation #कविता #mukhouta #nakab  White कुछ मुस्कुराहटें उस इंसान की ख़ुशी का प्रतिबिंब नहीं होती,
दरअसल, यह आपकी क्षमताओं पर संदेह का संकेत है...

©Sandeep Kothar

मुखौटा मुस्कुराहट का... दरअसल दोस्तों, जीवन के पथ पर आप कई लोगों से मिलेंगे, सबसे पहले माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त और फिर शिक्षक, सह

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White चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :- जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।। घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।। बाजारों में देख उछाल , कहे शुद्ध है मेरा माल ।। सब्जी-भाजी है अब काल । सबसे अच्छी सुंदर दाल ।। कैसे सब हो आज अचेत , स्वस्थ प्रति रहो सभी सचेत ।। ध्यान लगाकर सुन लो बात । करे मिलावट सीधे घात ।। मिली-जुली सरकारे आज , पहने बैठी किस्मत ताज ।। वही मिलेगी वट की छाँव , आओ लौट चले हम गाँव ।। हैंडपंप का पानी स्वच्छ ,  मिनिरल पानी लगता तुच्छ ।। ढ़ेले वाला लाओ नोन , करो बी पी को ग्रीन जोन ।। अपने बदलो अभी विचार , संकट में है यह संसार ।। वृक्ष लगाओ मिलकर चार । करो प्रकृति से सब मनुहार ।। दाना-दाना होगी रास , पूर्ण तभी हो जीवन आस ।। माया नगरी की सौगात , करती सीधा दिल पे घात ।। सब में बसतें हैं श्री राम , हाथ जोड कर करो प्रणाम ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :-
जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।।
घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।।
बाजारों में देख उछाल , कहे शुद्ध है मेरा माल ।।
सब्जी-भाजी है अब काल । सबसे अच्छी सुंदर दाल ।।
कैसे सब हो आज अचेत , स्वस्थ प्रति रहो सभी सचेत ।।
ध्यान लगाकर सुन लो बात । करे मिलावट सीधे घात ।।
मिली-जुली सरकारे आज , पहने बैठी किस्मत ताज ।।
वही मिलेगी वट की छाँव , आओ लौट चले हम गाँव ।।
हैंडपंप का पानी स्वच्छ ,  मिनिरल पानी लगता तुच्छ ।।
ढ़ेले वाला लाओ नोन , करो बी पी को ग्रीन जोन ।।
अपने बदलो अभी विचार , संकट में है यह संसार ।।
वृक्ष लगाओ मिलकर चार । करो प्रकृति से सब मनुहार ।।
दाना-दाना होगी रास , पूर्ण तभी हो जीवन आस ।।
माया नगरी की सौगात , करती सीधा दिल पे घात ।।
सब में बसतें हैं श्री राम , हाथ जोड कर करो प्रणाम ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :- जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।। घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।। बाजारों में देख

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#nojotohindipoetry #रक्षक #दोहे #sandiprohila #nojotohindi  रक्षक (दोहे)

रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर।
तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।

रक्षक हो जब सामने, होता है विश्वास।
रक्षा कर पालन करे, यही बनाती खास।।

रक्षक भूले कर्म जो, भक्षक का हो राज।
संकट में फिर जिंदगी, कैसे पहने ताज।।

देव-दूत कहते उसे, है रक्षक का रूप।
भक्षक को ऐसे लगे, जैसे तपती धूप।।

रक्षक की ताकत बड़ी, ईश्वर देते साथ।
जहाँ पड़े कमजोर है, सर पर रखते हाथ।।

भक्षक भी फिर टूटता, रक्षक देता चोट।
भागा-भागा वह फिरे, कहीं न मिलती ओट।।
.............................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

#रक्षक #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi रक्षक (दोहे) रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर। तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।

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#वीडियो #viral

बिना हेलमेट कार चलाने पर कटा चालान #nojoto #viral

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चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।। नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।। कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।। आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।। यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।। देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।। खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।। पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।। आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे । स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।। बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा । दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।। लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े । बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।। राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते । अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी । प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा । जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।। २४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  चौपाई छन्द :-

पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।।
मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।।

चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।।
नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।।

कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।।
आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।।

यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।।
देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।।

खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।।
पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।।

आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे ।
स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।।

बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा ।
दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।।

लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े ।
बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।।

राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते ।
अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी ।

प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा ।
जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।।

२४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच

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#hindi_poem_appreciation #कविता #mukhouta #nakab  White कुछ मुस्कुराहटें उस इंसान की ख़ुशी का प्रतिबिंब नहीं होती,
दरअसल, यह आपकी क्षमताओं पर संदेह का संकेत है...

©Sandeep Kothar

मुखौटा मुस्कुराहट का... दरअसल दोस्तों, जीवन के पथ पर आप कई लोगों से मिलेंगे, सबसे पहले माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त और फिर शिक्षक, सह

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White चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :- जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।। घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।। बाजारों में देख उछाल , कहे शुद्ध है मेरा माल ।। सब्जी-भाजी है अब काल । सबसे अच्छी सुंदर दाल ।। कैसे सब हो आज अचेत , स्वस्थ प्रति रहो सभी सचेत ।। ध्यान लगाकर सुन लो बात । करे मिलावट सीधे घात ।। मिली-जुली सरकारे आज , पहने बैठी किस्मत ताज ।। वही मिलेगी वट की छाँव , आओ लौट चले हम गाँव ।। हैंडपंप का पानी स्वच्छ ,  मिनिरल पानी लगता तुच्छ ।। ढ़ेले वाला लाओ नोन , करो बी पी को ग्रीन जोन ।। अपने बदलो अभी विचार , संकट में है यह संसार ।। वृक्ष लगाओ मिलकर चार । करो प्रकृति से सब मनुहार ।। दाना-दाना होगी रास , पूर्ण तभी हो जीवन आस ।। माया नगरी की सौगात , करती सीधा दिल पे घात ।। सब में बसतें हैं श्री राम , हाथ जोड कर करो प्रणाम ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :-
जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।।
घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।।
बाजारों में देख उछाल , कहे शुद्ध है मेरा माल ।।
सब्जी-भाजी है अब काल । सबसे अच्छी सुंदर दाल ।।
कैसे सब हो आज अचेत , स्वस्थ प्रति रहो सभी सचेत ।।
ध्यान लगाकर सुन लो बात । करे मिलावट सीधे घात ।।
मिली-जुली सरकारे आज , पहने बैठी किस्मत ताज ।।
वही मिलेगी वट की छाँव , आओ लौट चले हम गाँव ।।
हैंडपंप का पानी स्वच्छ ,  मिनिरल पानी लगता तुच्छ ।।
ढ़ेले वाला लाओ नोन , करो बी पी को ग्रीन जोन ।।
अपने बदलो अभी विचार , संकट में है यह संसार ।।
वृक्ष लगाओ मिलकर चार । करो प्रकृति से सब मनुहार ।।
दाना-दाना होगी रास , पूर्ण तभी हो जीवन आस ।।
माया नगरी की सौगात , करती सीधा दिल पे घात ।।
सब में बसतें हैं श्री राम , हाथ जोड कर करो प्रणाम ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपई /जयकरी/जयकारी छन्द :- जिसमें व्यापारी का काम । उसको करना दूर प्रणाम ।। घोलो सत्तू पीलो आज । पेट दर्द का करो इलाज ।। बाजारों में देख

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#nojotohindipoetry #रक्षक #दोहे #sandiprohila #nojotohindi  रक्षक (दोहे)

रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर।
तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।

रक्षक हो जब सामने, होता है विश्वास।
रक्षा कर पालन करे, यही बनाती खास।।

रक्षक भूले कर्म जो, भक्षक का हो राज।
संकट में फिर जिंदगी, कैसे पहने ताज।।

देव-दूत कहते उसे, है रक्षक का रूप।
भक्षक को ऐसे लगे, जैसे तपती धूप।।

रक्षक की ताकत बड़ी, ईश्वर देते साथ।
जहाँ पड़े कमजोर है, सर पर रखते हाथ।।

भक्षक भी फिर टूटता, रक्षक देता चोट।
भागा-भागा वह फिरे, कहीं न मिलती ओट।।
.............................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

#रक्षक #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi रक्षक (दोहे) रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर। तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।

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बिना हेलमेट कार चलाने पर कटा चालान #nojoto #viral

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चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।। नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।। कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।। आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।। यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।। देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।। खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।। पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।। आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे । स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।। बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा । दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।। लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े । बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।। राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते । अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी । प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा । जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।। २४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  चौपाई छन्द :-

पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।।
मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।।

चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।।
नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।।

कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।।
आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।।

यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।।
देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।।

खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।।
पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।।

आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे ।
स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।।

बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा ।
दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।।

लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े ।
बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।।

राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते ।
अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी ।

प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा ।
जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।।

२४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई ।  हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ  । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच

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