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#विचार #suparbhat #chintan #vichar #rohit #Moon  जब किसीकी 99 अच्छाईयों को
, छोड़कर एक भूल पर ताना मारो, 
, तो अगली दफा तुम उन 99
, अच्छाइयों की उम्मीद मत रखना.
, सुप्रभात

©Rohit Ekka
#विचार #Jivan_Ki_Sikh #chintan #manjil #vichar #alone  , प्रत्येक सुबह आपको
, ये बताती है कि
, आपके जीवन का लक्ष्य
, अभी पूरा नही हुआ है
, किसी कि सलाह से
, रास्ते जरूर साफ हो जाते हैं
, लेकिन मन्जिल तक का सफर
, खुद की मेहनत से ही
, तय करना पड़ता है
, ना हारते हैं वक़्त से
, ना जीतते हैं वक़्त से
, सफल  वही  होते हैं
, जो सीखते हैं वक़्त से
, 
,                    सुप्रभात,,,,

©Rohit Ekka

मैंने ज़िंदगी से पुछा कि तू इतनी कठिन क्यों है? , ज़िंदगी ने हंसकर कहा, "दुनियां आसान चीज़ों की कद्र नहीं करती"। ©Rohit Ekka

#विचार #Jindagi #chintan #rohit #Asan  मैंने ज़िंदगी से पुछा कि तू इतनी कठिन क्यों है?
, ज़िंदगी ने हंसकर कहा, "दुनियां आसान चीज़ों की कद्र नहीं करती"।

©Rohit Ekka
#विचार #holikadahan #Jindagi #chintan #takdir  ज़िन्दगी  तस्वीर  भी  है  और  तकदीर  भी 
, फर्क  तो  सिर्फ  रंगो  का  हैं ,
, मनचाहे  रंगो  से  बने  तो  तस्वीर 
, और  अनजाने  रंगो  से  बने  तो  तकदीर

©Rohit Ekka

दृश्य बोध जब जंजीर से, किसी इतर को बांधा गया, तब बेवजह, जंजीर भी स्वयं बंध गई ! किंतु जंजीर का, सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ, इतर को बांधना ही हो तो; परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है ! ----------- जैसे जंजीर ने, अपने स्वभाव का प्रबंध किया, सृष्टि पालक ने, जंजीर को वही वापस दिया ! इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में, हमें अपने, पात्र निर्माण को यदा-कदा, इर्द गिर्द के, दर्पणों में देख लेना चाहिए ! कहीं हम, रफ्ता रफ्ता जंजीर सी; तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है ! डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #विचार #poetsofindia #DrishyaBodh  दृश्य बोध

जब जंजीर से,
किसी इतर को बांधा गया,
तब बेवजह,
जंजीर भी स्वयं बंध गई !
किंतु जंजीर का,
सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ,
इतर को बांधना ही हो तो;
परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है !
-----------
जैसे जंजीर ने,
अपने स्वभाव का प्रबंध किया,
सृष्टि पालक ने,
जंजीर को वही वापस दिया !
इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में,
हमें अपने,
पात्र निर्माण को यदा-कदा,
इर्द गिर्द के,
दर्पणों में देख लेना चाहिए !

कहीं हम,
रफ्ता रफ्ता जंजीर सी;
तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है !

डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत

©Anand Dadhich
#विचार #wholegrain #chintan #vichar #rohit  आज का विचार. अंतःकरण दीपक की भांति स्वयं को प्रत्यक्ष करता है और अन्य वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है वास्तविकता यह है कि अंतःकरण मानव परमात्मा की उपस्थिति है

©Rohit Ekka
#विचार #suparbhat #chintan #vichar #rohit #Moon  जब किसीकी 99 अच्छाईयों को
, छोड़कर एक भूल पर ताना मारो, 
, तो अगली दफा तुम उन 99
, अच्छाइयों की उम्मीद मत रखना.
, सुप्रभात

©Rohit Ekka
#विचार #Jivan_Ki_Sikh #chintan #manjil #vichar #alone  , प्रत्येक सुबह आपको
, ये बताती है कि
, आपके जीवन का लक्ष्य
, अभी पूरा नही हुआ है
, किसी कि सलाह से
, रास्ते जरूर साफ हो जाते हैं
, लेकिन मन्जिल तक का सफर
, खुद की मेहनत से ही
, तय करना पड़ता है
, ना हारते हैं वक़्त से
, ना जीतते हैं वक़्त से
, सफल  वही  होते हैं
, जो सीखते हैं वक़्त से
, 
,                    सुप्रभात,,,,

©Rohit Ekka

मैंने ज़िंदगी से पुछा कि तू इतनी कठिन क्यों है? , ज़िंदगी ने हंसकर कहा, "दुनियां आसान चीज़ों की कद्र नहीं करती"। ©Rohit Ekka

#विचार #Jindagi #chintan #rohit #Asan  मैंने ज़िंदगी से पुछा कि तू इतनी कठिन क्यों है?
, ज़िंदगी ने हंसकर कहा, "दुनियां आसान चीज़ों की कद्र नहीं करती"।

©Rohit Ekka
#विचार #holikadahan #Jindagi #chintan #takdir  ज़िन्दगी  तस्वीर  भी  है  और  तकदीर  भी 
, फर्क  तो  सिर्फ  रंगो  का  हैं ,
, मनचाहे  रंगो  से  बने  तो  तस्वीर 
, और  अनजाने  रंगो  से  बने  तो  तकदीर

©Rohit Ekka

दृश्य बोध जब जंजीर से, किसी इतर को बांधा गया, तब बेवजह, जंजीर भी स्वयं बंध गई ! किंतु जंजीर का, सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ, इतर को बांधना ही हो तो; परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है ! ----------- जैसे जंजीर ने, अपने स्वभाव का प्रबंध किया, सृष्टि पालक ने, जंजीर को वही वापस दिया ! इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में, हमें अपने, पात्र निर्माण को यदा-कदा, इर्द गिर्द के, दर्पणों में देख लेना चाहिए ! कहीं हम, रफ्ता रफ्ता जंजीर सी; तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है ! डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #विचार #poetsofindia #DrishyaBodh  दृश्य बोध

जब जंजीर से,
किसी इतर को बांधा गया,
तब बेवजह,
जंजीर भी स्वयं बंध गई !
किंतु जंजीर का,
सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ,
इतर को बांधना ही हो तो;
परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है !
-----------
जैसे जंजीर ने,
अपने स्वभाव का प्रबंध किया,
सृष्टि पालक ने,
जंजीर को वही वापस दिया !
इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में,
हमें अपने,
पात्र निर्माण को यदा-कदा,
इर्द गिर्द के,
दर्पणों में देख लेना चाहिए !

कहीं हम,
रफ्ता रफ्ता जंजीर सी;
तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है !

डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत

©Anand Dadhich
#विचार #wholegrain #chintan #vichar #rohit  आज का विचार. अंतःकरण दीपक की भांति स्वयं को प्रत्यक्ष करता है और अन्य वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है वास्तविकता यह है कि अंतःकरण मानव परमात्मा की उपस्थिति है

©Rohit Ekka
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