दृश्य बोध
जब जंजीर से,
किसी इतर को बांधा गया,
तब बेवजह,
जंजीर भी स्वयं बंध गई !
किंतु जंजीर का,
सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ,
इतर को बांधना ही हो तो;
परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है !
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जैसे जंजीर ने,
अपने स्वभाव का प्रबंध किया,
सृष्टि पालक ने,
जंजीर को वही वापस दिया !
इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में,
हमें अपने,
पात्र निर्माण को यदा-कदा,
इर्द गिर्द के,
दर्पणों में देख लेना चाहिए !
कहीं हम,
रफ्ता रफ्ता जंजीर सी;
तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है !
डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत
©Anand Dadhich
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