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#शायरी #Free  White बैठ कर ख़ामोश् अब तुम्हें आज़मायेंगे देखते है हम तुम्हें कब याद आयेंगे

©RAVI PRAKASH

#Free ख़ामोश् अब

135 View

अंधेरे की सोहबत से आजाद हूँ अब, बेख़बर सुनता कोई फरियाद हूँ अब, नहीं है ख़्वाहिश दिखाई दूँ शिखर पे, मुक़म्मल से घर की बुनियाद हूँ अब, फूल कलियों से चमन में ताज़गी है, दुआओं के इत्र से आबाद हूँ अब, चाँदनी उतरी है दिल के दरीचे में, लग रहा जैसे कोई महताब हूँ अब, जलने वाले इस क़दर हैरानगी से, देखते जैसे कोई तेजाब हूँ अब, झुकाते हैं शीश दरवाजे पे आकर, नगर सीमा पर खड़ी मेहराब हूँ अब, ख़त्म दौर-ए-जहाँ का करके गुंजन, ख़ुद से मिलने को बड़ा बेताब हूँ अब, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी #आजाद  अंधेरे की सोहबत से आजाद हूँ अब, 
बेख़बर सुनता कोई फरियाद हूँ अब, 

नहीं है ख़्वाहिश दिखाई दूँ शिखर पे,
मुक़म्मल से घर की बुनियाद हूँ अब, 

फूल कलियों से  चमन में  ताज़गी है, 
दुआओं  के  इत्र  से  आबाद हूँ  अब, 

चाँदनी  उतरी  है  दिल  के  दरीचे में, 
लग रहा  जैसे  कोई  महताब हूँ अब, 

जलने  वाले  इस  क़दर  हैरानगी से, 
देखते  जैसे   कोई   तेजाब  हूँ  अब, 

झुकाते  हैं  शीश  दरवाजे पे आकर, 
नगर सीमा पर खड़ी मेहराब हूँ अब,

ख़त्म  दौर-ए-जहाँ का  करके गुंजन,
ख़ुद से मिलने को बड़ा बेताब हूँ अब, 
      --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
             चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

#आजाद हूँ अब#

13 Love

#शायरी  सच बोलें तो लगता है ये, पत्थर का शहर है,
जो बोलें झूठ तो हम खुद ही, पत्थर के हो गए।

🍁🍁🍁

©Neel

जो बोलें झूठ 🍁

1,242 View

#अब #लव  आंखों ही आंखों में तुमसे प्यार
 हो गया हमने दिल को संभाले
रखा था पर फिर भी न जाने ये
 दिल कब तुम्हारा हो गया।

©Bulbul varshney

#अब अब ये दिल हमारे बस में नहीं है।

99 View

 गुलाबी शहतूत से होंठ
जिनसे.. 
एक एक शब्द  
प्रेम से पगा 
ऐसे स्फुटित होता था 
सैकड़ों गुलमोहर 
जैसे एक साथ झर रहे हों 
वो शिद्दत याद आ रही है
वो आंखे याद आ रहीं हैं
ब्रह्मांड के समूचे प्रेम को 
गूंथ कर भी जो कल्पना में 
नहीं आ सकतीं
वो चितवन... 
वो अदा.. वो नफासत...
पर.. 
एक पल में झटक देता हूँ 
अब ..... 
इस डर से कि..
उसे  देखने भर से 
फिर मोहब्बत ना हो जाए कहीं .. ..
उसकी किसी तस्वीर को 
अब कभी गौर से नहीं देखता 
वो पर्याय है भूली कविताओं का.. 
बिसरी स्मृतियों का
विसर्जित दुखों का......
विसर्जित.. 
और त्याज्य का मोह व्यर्थ है 
उसके लिए बहते आँसू व्यर्थ हैं
ये व्यथा व्यर्थ है.... 
सब...व्यर्थ ही तो है

©हिमांशु Kulshreshtha

अब...

117 View

#शायरी #अब  किसे है ढूँढता मन  जब पहर ही  बीतने को है
लड़ाई  साँस की हारे  बचा क्या  जीतने को है
सबक कितने दिए  इस ज़िन्दगी ने भूल बैठे हैं
रहा ये  आख़िरी पन्ना  बता क्या सीखने को है.

©malay_28

#अब बचा क्या है

153 View

#शायरी #Free  White बैठ कर ख़ामोश् अब तुम्हें आज़मायेंगे देखते है हम तुम्हें कब याद आयेंगे

©RAVI PRAKASH

#Free ख़ामोश् अब

135 View

अंधेरे की सोहबत से आजाद हूँ अब, बेख़बर सुनता कोई फरियाद हूँ अब, नहीं है ख़्वाहिश दिखाई दूँ शिखर पे, मुक़म्मल से घर की बुनियाद हूँ अब, फूल कलियों से चमन में ताज़गी है, दुआओं के इत्र से आबाद हूँ अब, चाँदनी उतरी है दिल के दरीचे में, लग रहा जैसे कोई महताब हूँ अब, जलने वाले इस क़दर हैरानगी से, देखते जैसे कोई तेजाब हूँ अब, झुकाते हैं शीश दरवाजे पे आकर, नगर सीमा पर खड़ी मेहराब हूँ अब, ख़त्म दौर-ए-जहाँ का करके गुंजन, ख़ुद से मिलने को बड़ा बेताब हूँ अब, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी #आजाद  अंधेरे की सोहबत से आजाद हूँ अब, 
बेख़बर सुनता कोई फरियाद हूँ अब, 

नहीं है ख़्वाहिश दिखाई दूँ शिखर पे,
मुक़म्मल से घर की बुनियाद हूँ अब, 

फूल कलियों से  चमन में  ताज़गी है, 
दुआओं  के  इत्र  से  आबाद हूँ  अब, 

चाँदनी  उतरी  है  दिल  के  दरीचे में, 
लग रहा  जैसे  कोई  महताब हूँ अब, 

जलने  वाले  इस  क़दर  हैरानगी से, 
देखते  जैसे   कोई   तेजाब  हूँ  अब, 

झुकाते  हैं  शीश  दरवाजे पे आकर, 
नगर सीमा पर खड़ी मेहराब हूँ अब,

ख़त्म  दौर-ए-जहाँ का  करके गुंजन,
ख़ुद से मिलने को बड़ा बेताब हूँ अब, 
      --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
             चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

#आजाद हूँ अब#

13 Love

#शायरी  सच बोलें तो लगता है ये, पत्थर का शहर है,
जो बोलें झूठ तो हम खुद ही, पत्थर के हो गए।

🍁🍁🍁

©Neel

जो बोलें झूठ 🍁

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#अब #लव  आंखों ही आंखों में तुमसे प्यार
 हो गया हमने दिल को संभाले
रखा था पर फिर भी न जाने ये
 दिल कब तुम्हारा हो गया।

©Bulbul varshney

#अब अब ये दिल हमारे बस में नहीं है।

99 View

 गुलाबी शहतूत से होंठ
जिनसे.. 
एक एक शब्द  
प्रेम से पगा 
ऐसे स्फुटित होता था 
सैकड़ों गुलमोहर 
जैसे एक साथ झर रहे हों 
वो शिद्दत याद आ रही है
वो आंखे याद आ रहीं हैं
ब्रह्मांड के समूचे प्रेम को 
गूंथ कर भी जो कल्पना में 
नहीं आ सकतीं
वो चितवन... 
वो अदा.. वो नफासत...
पर.. 
एक पल में झटक देता हूँ 
अब ..... 
इस डर से कि..
उसे  देखने भर से 
फिर मोहब्बत ना हो जाए कहीं .. ..
उसकी किसी तस्वीर को 
अब कभी गौर से नहीं देखता 
वो पर्याय है भूली कविताओं का.. 
बिसरी स्मृतियों का
विसर्जित दुखों का......
विसर्जित.. 
और त्याज्य का मोह व्यर्थ है 
उसके लिए बहते आँसू व्यर्थ हैं
ये व्यथा व्यर्थ है.... 
सब...व्यर्थ ही तो है

©हिमांशु Kulshreshtha

अब...

117 View

#शायरी #अब  किसे है ढूँढता मन  जब पहर ही  बीतने को है
लड़ाई  साँस की हारे  बचा क्या  जीतने को है
सबक कितने दिए  इस ज़िन्दगी ने भूल बैठे हैं
रहा ये  आख़िरी पन्ना  बता क्या सीखने को है.

©malay_28

#अब बचा क्या है

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