ख़िलाफ़त की पतंग, यूँ मांझों से उलझने लगी है; दिल जहाँ बिखरे थे कल, अब राहें वहीं जुड़ने लगी हैं। क़यामत की ख़बर तू भी, ऐ शब क्या साथ लाई है? कुछ बात रही होगी, उस त.
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