तुझसे बिछड़कर हम शायर बन गए,
चाहते तो पागल भी बन सक
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तुझसे बिछड़कर हम शायर बन गए, चाहते तो पागल भी बन सकते थे। तन्हाई में हम किताब खाने जाते हैं, पास में मयखाने भी है वहा भी जा सकते थे। लोग तो अपने महबूब से बिछड़कर शराब पीते हैं, एक हम है हर रोज तेरा गम पिये जा रहे हैं। हमने हाथों की दो उंगलियों के बीच , आज कलम उठा रहे हैं, शेर सुना रहे हैं, चाहते तो हम सिगरेट उठा कर, धुँआ उड़ा सकते थे। तेरे इश्क़ का कैसा असर हुआ मुझपर, मुझे तो बिगड़ना चाहिए था, ओर हम सुधरते जा रहे हैं ©verma sahab

 तुझसे बिछड़कर हम शायर बन गए,
चाहते तो पागल भी बन सकते थे।
तन्हाई में हम किताब खाने जाते हैं,
पास में मयखाने भी है वहा भी जा सकते थे।
लोग तो अपने महबूब से बिछड़कर शराब पीते हैं,
एक हम है हर रोज तेरा गम पिये जा रहे हैं।
हमने हाथों की दो उंगलियों के बीच ,
आज कलम उठा रहे हैं,
शेर सुना रहे हैं,
चाहते तो हम सिगरेट उठा कर,
 धुँआ उड़ा सकते थे।
तेरे इश्क़ का कैसा असर हुआ मुझपर,
मुझे तो बिगड़ना चाहिए था,
ओर हम सुधरते जा रहे हैं

©verma sahab

तुझसे बिछड़कर हम शायर बन गए, चाहते तो पागल भी बन सकते थे। तन्हाई में हम किताब खाने जाते हैं, पास में मयखाने भी है वहा भी जा सकते थे। लोग तो अपने महबूब से बिछड़कर शराब पीते हैं, एक हम है हर रोज तेरा गम पिये जा रहे हैं। हमने हाथों की दो उंगलियों के बीच , आज कलम उठा रहे हैं, शेर सुना रहे हैं, चाहते तो हम सिगरेट उठा कर, धुँआ उड़ा सकते थे। तेरे इश्क़ का कैसा असर हुआ मुझपर, मुझे तो बिगड़ना चाहिए था, ओर हम सुधरते जा रहे हैं ©verma sahab

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