जब भी महफ़िल ए बेवफा सजाई जाती हैं,
मुझ जैसी नाकाम
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 जब भी महफ़िल ए बेवफा सजाई जाती हैं,
मुझ जैसी नाकाम शख्शियत ज़रूर बुलाई जाती हैं।

फिर मैं करता हूँ अपने दर्द की नुमाइश खुल ए आम,
फिर सर ए आम मेरी तकलीफ पर ताली बजाई जाती हैं।।

©Shayar Priyankur Shukla

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