"ना जाने क्यों कसौटियों पर कसते हैं सारे मुझे ही
पराएपन की तख्ती गले में मेरे रहती हैं लटकती
जज़्बातों के मोल खुद को ठगती रहूं
ताउम्र बेपैसे की मजदूरी करती रहूं
हो सकती हूं अनपढ़ लेकिन अक्खड़ नहीं हूं
जाहिल तो कभी भी होती जाहिर नहीं हूं
चुप रहो तुम फिर भी मैं ही सुनती हूं
बबली गुर्जर
©Babli Gurjar"