ना जाने क्यों कसौटियों पर कसते हैं सारे मुझे ही प | हिंदी शायरी

"ना जाने क्यों कसौटियों पर कसते हैं सारे मुझे ही पराएपन की तख्ती गले में मेरे रहती हैं लटकती जज़्बातों के मोल खुद को ठगती रहूं ताउम्र बेपैसे की मजदूरी करती रहूं हो सकती हूं अनपढ़ लेकिन अक्खड़ नहीं हूं जाहिल तो कभी भी होती जाहिर नहीं हूं चुप रहो तुम फिर भी मैं ही सुनती हूं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar"

 ना जाने क्यों कसौटियों पर कसते हैं सारे मुझे ही 
पराएपन की तख्ती गले में मेरे रहती हैं लटकती 

जज़्बातों के मोल खुद को ठगती रहूं 
ताउम्र बेपैसे की मजदूरी करती रहूं 


हो सकती हूं अनपढ़ लेकिन अक्खड़ नहीं हूं 
जाहिल तो कभी भी होती जाहिर नहीं हूं 

 चुप रहो तुम फिर भी मैं ही सुनती हूं 
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar

ना जाने क्यों कसौटियों पर कसते हैं सारे मुझे ही पराएपन की तख्ती गले में मेरे रहती हैं लटकती जज़्बातों के मोल खुद को ठगती रहूं ताउम्र बेपैसे की मजदूरी करती रहूं हो सकती हूं अनपढ़ लेकिन अक्खड़ नहीं हूं जाहिल तो कभी भी होती जाहिर नहीं हूं चुप रहो तुम फिर भी मैं ही सुनती हूं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar

क्यों @Neel @Miss Shalini @Bhanu Priya Nîkîtã Guptā @kavita pramar @Bhanu Priya

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