kavi manish mann

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यूपी की जमीं से हूं प्रयागराज में रहता हूं! हिंदी में स्नातक हूं, बस हिंदी में लिखता हूं। पेशे से अध्यापक हूं। मेरे रुचिकर विषय हिंदी, अंग्रेजी और गणित हैं।

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दर्श मिले यदि आपका मोहन चाह नहीं कुछ और मिले फिर। बालक रूप में आँगन आओ तो द्वापर का वह दौर मिले फिर।

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #कृष्ण  दर्श मिले यदि आपका मोहन चाह नहीं कुछ और मिले फिर।
बालक रूप में आँगन आओ तो द्वापर का वह दौर मिले फिर।

किंतु लेकिन तो कहीं पर काश बनकर रह गई। जिंदगी दीनों की बस उपहास बनकर रह गई। मीडिया को चाहिए था सत्य के वो साथ हो, किंतु वो दरबार की बस दास बनकर रह गई।

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #जिंदगी #जीवन #दीन  किंतु लेकिन तो कहीं पर काश बनकर रह गई।
जिंदगी दीनों की बस  उपहास बनकर रह गई।
मीडिया को  चाहिए था  सत्य के  वो साथ हो,
किंतु वो  दरबार की बस  दास बनकर रह गई।

यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं। पूर्ण हो पाए न जो वो कल्पनाएंँ व्यर्थ हैं। मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो, बोल दे कोई उन्हें ये यात्राएंँ व्यर्थ हैं।

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #कल्पनाएंँ #मुक्तक_मन #यात्राएं #याचनाएंँ  यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं।
पूर्ण हो पाए न जो  वो कल्पनाएंँ  व्यर्थ हैं।
मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो,
बोल  दे  कोई  उन्हें  ये  यात्राएंँ  व्यर्थ  हैं।

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पूर्ण हो पाए न जो वो कल्पनाएंँ व्यर्थ हैं। यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं। मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो, बोल दे कोई उन्हें ये यात्राएंँ व्यर्थ हैं।

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #मुक्तक_मन  
पूर्ण हो पाए न जो  वो कल्पनाएंँ  व्यर्थ हैं।
यदि हृदय पाषाण है तो याचनाएंँ व्यर्थ हैं।
मांँ पिता को भूलकर जो घूमते हैं धाम चारो,
बोल दे  कोई  उन्हें  ये  यात्राएंँ  व्यर्थ  हैं।

किताब के बारे में मेरे प्रिय पाठकों, जीवन एक यात्रा है इस यात्रा में जहांँ खुशी,शांति,प्रेम और एकांत की अनुभूति होती हैं वहीं हमें धूप,सर्दी,बारिश,तूफान पर्वत जैसी छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना होता है। और इस यात्रा में हम जब खुश होते हैं तो कोई गीत गुनगुनाते हैं,प्रेम का स्पर्श होता है तो प्रेम गीत गाते हैं,बिछड़ते हैं विरह गीत गाकर या सुनकर अपने मन को हल्का करने की कोशिश करते हैं। जब हमारे पास कोई नहीं होता तो कविताएंँ साथ होती हैं,हमें सांत्वना देती हैं। अतः हम कह सकते हैं कविताऐं हमारे दुःख–सुख की साथी हैं। आप इस किताब में कविताओं के अनेक भावों को महसूस करेंगे। एक आम जनमानस के जीवन की कठिनाईयांँ, कोरोना में लोगों का जीवन,बेरोजगार युवाओं की पीड़ा,प्रेम की चंचलता,विरह वेदना,ईश्वर के प्रति आस्था,राष्ट्र के प्रति समर्पण महसूस कर पाएंँगे। कवि मनीष ‘मन’

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #बुक  किताब के बारे में

मेरे प्रिय पाठकों,
                     जीवन एक यात्रा है इस यात्रा में जहांँ खुशी,शांति,प्रेम और एकांत की अनुभूति होती हैं वहीं हमें धूप,सर्दी,बारिश,तूफान पर्वत जैसी छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना होता है। और इस यात्रा में हम जब खुश होते हैं तो कोई गीत गुनगुनाते हैं,प्रेम का स्पर्श होता है तो प्रेम गीत गाते हैं,बिछड़ते हैं विरह गीत गाकर या सुनकर अपने मन को      हल्का करने की कोशिश करते हैं। जब हमारे पास कोई नहीं होता तो कविताएंँ साथ होती हैं,हमें सांत्वना देती हैं।
    अतः हम कह सकते हैं कविताऐं हमारे दुःख–सुख की साथी हैं।
आप इस किताब में कविताओं के अनेक भावों को महसूस करेंगे। एक आम जनमानस के जीवन की कठिनाईयांँ, कोरोना में लोगों का जीवन,बेरोजगार युवाओं की पीड़ा,प्रेम की चंचलता,विरह वेदना,ईश्वर के प्रति आस्था,राष्ट्र के प्रति समर्पण महसूस कर पाएंँगे।
                                   कवि मनीष ‘मन’

किताब के बारे में #मौर्यवंशी_मनीष_मन #बुक

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करो मत फिक्र तुमको कौन कितना क्या समझते हैं।। यहांँ बस लोग जितना हैं तुम्हें उतना समझते हैं। बहुत अच्छे बनो मत तुम फरेबी इस जमाने में, यहांँ सच्चे को साहब राह का कांँटा समझते हैं। बगावत भूल बैठे हैं लगे सब चापलूसी में, यहांँ पर जी हुजूरी को सभी अच्छा समझते हैं। हिमालय से निकलकर बह रही जो आज तक यूंँ ही, विरह में रो रहा पर्वत जिसे नदिया समझते हैं।

#मौर्यवंशी_मनीष_मन #ग़ज़ल_मन  करो मत फिक्र तुमको कौन कितना क्या समझते हैं।।
यहांँ बस लोग जितना हैं तुम्हें उतना समझते हैं।

बहुत अच्छे बनो मत तुम फरेबी इस जमाने में,
यहांँ सच्चे को साहब राह का कांँटा समझते हैं।

बगावत भूल बैठे हैं लगे सब चापलूसी में,
यहांँ पर जी हुजूरी को सभी अच्छा समझते हैं।

हिमालय से निकलकर बह रही जो आज तक यूंँ ही,
विरह में रो रहा पर्वत जिसे नदिया समझते हैं।
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