Prakash Dwivedi

Prakash Dwivedi Lives in Bhopal, Madhya Pradesh, India

मैं जो दर्द अनुभव करता हूँ , जो दुःख भोगता हूँ, जिस आनंद का रसपान करता हूँ , जिस सुख को महसूस करता हूँ, मेरी कवितायें उसी की अभिव्यंजना मात्र है ।

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रोज़ सोचता हूं तुम्हें सोचे बिना सो जाऊं पर सोचे बिना सो जाऊं ये भी सोचता हूं तुम्हें सोचने के बाद ।। ©Prakash Dwivedi

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पर सोचे बिना सो जाऊं ये भी सोचता हूं
तुम्हें सोचने के बाद ।।

©Prakash Dwivedi

अर्ध सत्य मैं ,अर्ध स्वप्न मैं, अर्ध निराशा, अर्ध हूं आशा, अर्ध अजीत और अर्ध जीत हूं, अर्ध तृप्त हूं, और अर्ध अतृप्त हूं, अर्ध पिपासा,और अर्ध प्रकाश हूं। जैसे शिव है अर्ध बिन गौरा के, जैसे राम अर्ध है बिन सिया के । जैसे श्याम अर्ध है बिन राधा के, हर पुरूष अर्ध है बिन प्रकृति (नारी) के।। आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी, बस इतनी सी है मेरी ज़ुबानी तुम न होते तो क्या लिख पाता आज मैं कहानी?? ©Prakash Dwivedi

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अर्ध तृप्त हूं, और अर्ध अतृप्त हूं, अर्ध पिपासा,और अर्ध प्रकाश हूं।

जैसे शिव है अर्ध बिन गौरा के,
जैसे राम अर्ध है बिन सिया के ।
जैसे श्याम अर्ध है बिन राधा के,
हर पुरूष अर्ध है बिन प्रकृति (नारी) के।।

आधी काया आग तुम्हारी,
आधी काया पानी,
बस इतनी सी है मेरी ज़ुबानी
तुम न होते तो क्या लिख पाता आज मैं कहानी??

©Prakash Dwivedi

तुम ये न कहना कि तुम इसलिए नहीं आई क्योंकि तुम आना नही चाहती थी । तुम ये कहना कि तुम आ नहीं पाई । क्योंकि रास्तों ने तुम्हें रास्ता नहीं दिया ।। तुम कह देना कि छाता भूल गई थी । तुम कह देना नाव में जगह कम थी।। तुम बस कहते जाना मैं सब मान लूंगा की फूल कांटे बन गए, घटा शोले बरसाने लगी तितली ने रास्ता भटका दिया या फिर नदियों ने उफान ले लिया सरहदे बदल गई और तुम्हें आने नहीं दिया पर तुम ये न कहना कि तुम इसलिए नहीं आई क्योंकि तुम आना नही चाहती थी ।। ©Prakash Dwivedi

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तुम इसलिए नहीं आई क्योंकि
तुम आना नही चाहती थी ।

तुम ये कहना कि तुम आ नहीं पाई ।
क्योंकि रास्तों ने तुम्हें रास्ता नहीं दिया ।।

तुम कह देना कि छाता भूल गई थी ।
तुम कह देना नाव में जगह कम थी।।

तुम बस कहते जाना मैं सब मान लूंगा की
फूल कांटे बन गए, घटा शोले बरसाने लगी
तितली ने रास्ता भटका दिया या फिर
नदियों ने उफान ले लिया 
सरहदे बदल गई और तुम्हें आने नहीं दिया

पर तुम ये न कहना कि
तुम इसलिए नहीं आई क्योंकि
तुम आना नही चाहती थी ।।

©Prakash Dwivedi

तुम ये न कहना कि तुम इसलिए नहीं आई क्योंकि तुम आना नही चाहती थी । तुम ये कहना कि तुम आ नहीं पाई । क्योंकि रास्तों ने तुम्हें रास्ता नहीं दिया ।। तुम कह देना कि छाता भूल गई थी ।

7 Love

।। पढ़ने दो ।। किसी बंधन में मत बांधो,पहले उसे पढ़ने तो दो। वो आजाद पंछी है पहले उसे उड़ने तो दो ।। वो वर्षा अमृत धारा हैं बिना मोड़ॆ बहनें तो दो । कद ऊंचा कर देगी तुम्हारा, पर पहले उसे उपर उठने तो दो ।। मंगलसूत्र का बंधन न दो, विद्या का आलय दो, मत उलझाओ रिश्तों के जाल में,अभी सिर्फ उस पढ़ने दो ।। कलम की आज़ादी दो, और उसे पढ़ने दो ।।।

#prakashdwivedipoetry #कविता #prakashdwivedi  ।। पढ़ने दो ।।

किसी बंधन में मत बांधो,पहले उसे पढ़ने तो दो।
वो आजाद पंछी है  पहले उसे उड़ने तो दो ।।

वो वर्षा अमृत धारा हैं बिना मोड़ॆ बहनें तो दो ।
कद ऊंचा कर देगी तुम्हारा, पर पहले उसे उपर उठने तो दो ।।

मंगलसूत्र का बंधन न दो, विद्या का आलय दो,
मत उलझाओ रिश्तों के जाल में,अभी सिर्फ उस पढ़ने दो ।।
कलम की आज़ादी दो, और उसे पढ़ने दो ।।।

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9 Love

।। नारी ~भाग-2।। नारी तेरे रूप हजार, मां ,बेटी ,बहना व प्यार । गौं, जननी और गंगा धार, नमन करूं मैं बारंबार ।। जलधि सी शांति स्वरूपा है, और ज्वाला रूप भवानी है। विकराल रूप धारण करें, तो रौद्र रूप महाकाली है।। वह कहती नहीं पर विस्मित है, आज के जय जयकारों से । वह स्वतंत्र है पर सीमित भी इन नारीवादो अधिकारों से ।। वह मान नहीं, वह गौंण नहीं, वो हर ललकार को रौंद रही। वह वसुधा की माटी शरीख, वो अंदर अंदर कौध रही ।। शब्द पिरोकर लिखा प्रकाश ने अब स्वीकार करो नारी सम्मान ।।

#prakashdwivedipoetry #prakashdwivedibhopal #कविता #prakashdwivedi  ।। नारी ~भाग-2।।

नारी तेरे रूप हजार, मां ,बेटी ,बहना व प्यार ।
गौं, जननी और गंगा धार, नमन करूं मैं बारंबार ।।

जलधि सी शांति स्वरूपा है, और ज्वाला रूप भवानी है।
विकराल रूप धारण करें, तो रौद्र रूप महाकाली है।।

वह कहती नहीं पर विस्मित है, आज के जय जयकारों से ।
वह स्वतंत्र है पर सीमित भी इन नारीवादो अधिकारों से ।।
वह मान नहीं, वह गौंण नहीं, वो हर ललकार को रौंद रही।
वह वसुधा की माटी शरीख, वो अंदर अंदर कौध रही ।।

शब्द पिरोकर लिखा प्रकाश ने अब स्वीकार करो नारी सम्मान ।।

।। नारी ~भाग-2।। नारी तेरे रूप हजार, मां ,बेटी ,बहना व प्यार । गौं, जननी और गंगा धार, नमन करूं मैं बारंबार ।। जलधि सी शांति स्वरूपा है, और ज्वाला रूप भवानी है। विकराल रूप धारण करें, तो रौद्र रूप महाकाली है।।

6 Love

।।नारी~ भाग -1 ।। नारी तू गंगा की निर्मल धारा है। नारी तुमसे ही तो अस्तित्व हमारा है।। नारी तू हर जीव की जीवनधारी है। हर रूप में नारी तू सबसे न्यारी है ।। तेरी ममता से जीवन हर्षित है। और हर नव जीवन निर्मित है।। तुम प्रेम की वर्षा-धारा हो । और बचपन की अमृतधारा हो।। गिरा गर्त में जिसने तुम्हें नकारा है। नारी स्वीकार करो सम्मान ये तुम्हारा है।।

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नारी तू गंगा की निर्मल धारा है।
नारी तुमसे ही तो अस्तित्व हमारा है।।

नारी तू हर जीव की जीवनधारी है।
हर रूप में  नारी तू सबसे न्यारी है ।।

तेरी ममता से जीवन हर्षित है।
और हर नव जीवन निर्मित है।।

तुम प्रेम की वर्षा-धारा हो ।
और बचपन की अमृतधारा हो।।

गिरा गर्त में जिसने तुम्हें नकारा है।
नारी स्वीकार करो सम्मान ये तुम्हारा है।।

।।नारी~ भाग -1 ।। नारी तू गंगा की निर्मल धारा है। नारी तुमसे ही तो अस्तित्व हमारा है।। नारी तू हर जीव की जीवनधारी है। हर रूप में नारी तू सबसे न्यारी है ।।

13 Love

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